शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

वो रहस्यमय औरत आखिर कौन हैं ?

यूँ तो जिन्दगी में मैंने गीत गजल कविता सीखने की बहुत कोशिश की । बट ..जैसे कहते हैं ना कि - हर कामयाब मर्द के पीछे एक औरत का हाथ होता है । इसलिये..मैं आज दिन तक उसी " एक औरत " को खोज रहा हूँ । जो मर्द को कामयाब बना देती है । पर अफ़सोस ! मेरे हाथ में ( ऐसी ) एक भी औरत नहीं आयी । मेरे हाथ में ..? इसलिये कहा । क्योंकि जैसे तैसे करके 1855 में ( जब मेरी नयी नयी शादी हुयी थी ) एक मिली भी थी । हफ़्ता भर बाद ही छोङकर भाग गयी । तबसे आज तक ( मजबूरी में ) साधु बाबा ही हूँ ।
खैर..इसके बाद बङे बच्चन ( अमिताभ ) जी की " शराबी " देखी । जिसमें बच्चन जी के शेर में वजन नहीं पैदा होता था । तब वे एक गाना के बदले ही नौ लखा ( मुझे नौ लखा मँगा दे रे । ओ सैंया दीवाने ) माँगने वाली जयाप्रदा का डांस प्लस सोंग देखने जाते हैं । और उनकी बात में वजन पैदा हो जाता है ।
और इसके साथ ही ये रहस्य भी खत्म हो गया कि - बात में वजन पैदा करने वाली वो लेडी स्पेशल कौन है ?
बस मैंने तुरन्त ही " दस लखा " लिया । और फ़र्स्ट फ़्लायट से मुम्बई.. जयाप्रदा जी के बंगले में ।
तब जयाप्रदा जी बोली - अफ़सोस राजीव जी ! आपने " दस लखा " लाने में बहुत देर कर दी । अब श्रीकांत नाहटा मुझे छोङने वाले नहीं हैं ।
और उस दिन के बाद आज ये " गाफ़िल " साहब मिले । जिनकी बात में कुछ वजन लगा । कुछ क्या बहुत कुछ 


लगा । जाहिर है । इन्हें उस औरत के बारे में पता ही होगा । इसलिये अब इनसे ही पूछने जा रहा हूँ कि - वो रहस्यमय औरत आखिर कौन हैं ?


सबूत के लिये देखिये । इनकी एक वजनदार गजल । और अधिक देखनी हैं । तो इनके ब्लाग -  ग़ाफ़िल की अमानत..पर जाने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये ।


फ़ज़ाएं मस्त मदमाती । अदाएं शोख दीवानी ।
ये हूरों की सी महफ़िल है । नज़ारा है परिस्तानी ।
घनी काली घटाओं में । खिला ज्यूँ फूल बिजली का ।
घनेरे स्याह बालों में । चमकते रुख हैं नूरानी ।
कशिश कैसी के बेख़ुद सा । चला जाए वहीं पर दिल ।
जहाँ ललकारती सागर की । हर इक मौज़ तूफ़ानी ।
भला ये ज्वार कैसा है । नशा ए प्यार कैसा है ।
हुआ जो ज़ुल्फ़ ज़िन्दाँ में । क़तीले चश्म जिन्दानी ।
ऐ ग़ाफ़िल ख़ुद के जन्नत से । जहाँ को ख़ुद किया दोज़ख ।
हुआ तू जिसका दीवाना । वो तेरी कब थी दीवानी ।


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तब तक जो दो लाइनें मैंने लिखी हैं । उन्हें भी पढिये -
जिस पथ पे चला । उस पथ पे मुझे । तू साथ तो आने दे ।
साथी ना समझ । कोई बात नहीं । मुझे साथ निभाने तो दे ।
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और ये है - श्री चन्द्रभूषण मिश्रा " गाफ़िल " जी का परिचय -




मेरी पैदाइश बस्ती ज़िले के एक मध्यवर्गीय जमींदार परिवार में हुई । लेकिन मेरे पैदा होने तक जमींदारी 


मटियामेट हो चुकी थी । बस ऐंठन बाकी थी । मेरे वालिद ने उच्च शिक्षा हेतु मेरा दाख़िला इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कराया । पर पढ़ाई के दौरान ही उनका इंतकाल हो गया । जैसे तैसे शिक्षा पूरी की । इकलौती औलाद होने के नाते मुझे घर को संभालने  वापस आना पड़ा । 
पढ़ाई लिखाई का शौक़ था । और गाँवं के ही क़रीब ही महाविद्यालय के पुस्तकालय में नौकरी मिल गयी । तो यह शौक़ भी पूरा हुआ । मीर तथा ग़ालिब की ग़ज़लें पढ़ पढ़कर हुई तुकबन्दी की शुरुआत ने ग़ाफ़िल बना दिया । अब बतौर ग़ाफ़िल आपके सामने हूँ । 
आपसे मेरी यही इल्तिजा है कि - या पे तो बिन बुलाए चले आईए ज़नाब । ख़ुश होईए भी और ख़ुशी लुटाईए ज़नाब । अब आ ही गये मेरे अंजुमन में तो रुकिए । जाना है तो चुपके से चले जाईए ज़नाब । बन तो गया हूँ बुत मैं, भले संगेमरमरी । अब छोड़िए भी और ना बनाईए ज़नाब । 'ग़ाफ़िल' हूँ मेरी बात हँसी में उड़ाईए । ख़ुद पे यक़ीन हो तो मुस्कुराईए ज़नाब । इनका ब्लाग - ग़ाफ़िल की अमानत

8 टिप्‍पणियां:

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

very nice post shikha ji

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

अच्छी पोस्ट ।

शिखा कौशिक ने कहा…

अच्छी पोस्ट ।

Shalini kaushik ने कहा…

1855 में ( जब मेरी नयी नयी शादी हुयी थी ) एक मिली भी थी । हफ़्ता भर बाद ही छोङकर भाग गयी । तबसे आज तक ( मजबूरी में ) साधु बाबा ही हूँ
chaliye rajeev ji aaj aapne swayam hi sweekar liya ki aap majboori me sadhu baba hain ham to jis din se blog jagat se jude hain hame yahi lag raha hai agar aisa n hota to bhala koi aisee shandar prastuti kaise de sakta hai jaise aap aksar dete hain .
aapki post ke sabhi photo aapki mam's ke chhodkar bahut hi shandar hote hain .
chandrabhushan ji bhi aapki tareef sare blog jagat me karte fir rahe hain ham abhi abhi unse milkar aa rahe hain aur unhone bhi aapke liye dhanyawad kahalwaya hai.

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

राजीव जी! आप सब को मेरा ब्लॉग अच्छा लगा तथा आपने मेरा और मेरे ब्लॉग का परिचय इतने रोचक ढंग से प्रस्तुत किया कि मैं अभिभूत हो गया। इसके लिए बहुत-बहुत आभार और शिखा जी को भी जिन्होंने मुझे यह सूचना दी पुनः धन्यवाद

Nidhi ने कहा…

शान्दार ...जानदार प्रस्तुति !!

virendra sharma ने कहा…

इत्तेफाक है गाफिल साहब कल ही आपके ब्लॉग पर पहली मर्तबा आना हुआ .आज डॉ शिखा कौशिक ने फिर मिलवा दिया .किसका शुक्रिया करूँ ?अच्छा लगा .कल भी आज भी .आप बहुत अच्छा और हटके लिख तहें हैं भीड़ से .

S.N SHUKLA ने कहा…

Behatreen, bahut sundar post