बार बार ये क्या हो रहा है मैं सोचती हूँ की आज मैं ये ब्लॉग अच्छा लगा पर किसी अच्छे ब्लॉग का लिंक दे पाऊंगी और जैसे ही मैं ये सोच आगे बढती हूँ की देखती हूँ की इस पर किसी और की प्रस्तुति आ चुकी होती है चलिए डॉ.अनवर जमाल जी की प्रस्तुति तो ब्लॉग व्यवस्थापक शिखा जी के अनुरोध पर ही आ पाई थी उनसे क्या पर राजीव कुलश्रेष्ठ जी की तो देखिये ये एक बार की बात नहीं बार बार की है जब जब मैं पोस्ट डालने की सोचती हूँ तब तब वे शायद ध्यान लगा कर पता लगा लेते हैं और मेरे और ब्लॉग के बीच में आ खड़े होते हैं .चलिए कोई बात नहीं उनकी हर पोस्ट होती ही बहुत शानदार है .
दूसरी बात उनकी हर पोस्ट देख व् पढ़ कर मुझे अपने मोहल्ले की वह लड़की याद आ जाती है जो हाईस्कूल तक पास नहीं कर पाई और हर वक़्त अंग्रेजी के गुणगान करती और उसके घर में भी उसे अंग्रेजी में बहुत होशियार कहा जाता .आप सभी ने ये बात तो नोट की ही होगी की राजीव जी अपनी अंग्रेजी मैम की ही चापलूसी में हर वक़्त लगे रहते हैं और इसी कोशिश में लगे रहते हैं की किसी तरह वे भी अंग्रेजों के रंग में रंग जाएँ और हर कोई इन्हें दिलीप कुमार की फिल्म गोपी के गाने के अनुसार यही कहे-
''जेंटिल मेन-जेंटिल मेन -जेंटिल मेन -आये ये लन्दन से बनठन के ''
जिस तरह भारत में अधिकांश लोगों के मन में अंग्रेज बनने की लगी है ऐसी ही कुछ हमारे राजीव कुलश्रेष्ठ जी के मन में लगी है
आप सब को ये तो पता ही है की मैं उनकी मैथ की मैम हूँ और ये आपको मैं बताती हूँ की वे मैथ में बिलकुल फिस्सडी हैं और उन्हें मैथ सिखाने को मैं कितना उनके पीछे भागी उनकी पिटाई भी की पर मजाल है की जो वे सुधर जाते और आज हल ये है की मैं खुद उन्हें सिखाने के चक्कर में आधा गणित तो भूल चुकी हूँ और शायद आधा और भूल जाऊंगी और अब तो शायद इस चक्कर में इतनी मुश्किल से जो नौकरी मिली थी वह भी चली जाएगी.
एक बात और मैंने कितनी बार कहा की राजीव आप अपनी राइटिंग सुधर लीजिये पर न उन्हें मेरी सुननी थी न सुनी और तो और मेरी अलमारी में रखी सारी रंगीन पेन्सिल भी उठाकर मुंबई के सागर में फैंक दी अरे सागर से मुझे याद आया की आज मैं जिस ब्लॉग का परिचय आपके लिए लायी हूँ वह भी तो ''सागर''ही है
कानपूर के आशीष अवस्थी जी का ये ब्लॉग ब्लॉग जगत में अभी अभी अपना स्थान बना रहा है और इस पर इनकी प्रस्तुति भी हम सभी की प्रशंसा की हक़दार है .पहले आप इनके ब्लॉग का url नोट कर लीजिये-जो ये है-
आशीष जी अपने बारे में कहते हैं-
मेरा परिचय
तुम जियो उस प्यार मे जो
मैने तुम्हे दिया है,
उस तन्हाई मेँ नही
जिसे मैने खुद मे छिपा लिया है....!
तुम खुश रहो उस खुशी मेँ
जो मैने तुम्हारे लिये चुनी है,
उस पीर मेँ नही
जो मैने खुद मे समेट ली है....!
तुम बढो उस मंजिल की तरफ
जिनकी राहे मैने तुम्हारे लिये बनाई है,
चुन लिया सब काँटो को फूलो से राहे सजायी है....!
तुम छुओ उस आकाश को
जो मैने तुम्हारे लिए तारो से सजाया है,
उस अँधेरे को नही जिसे मैने खुद मेँ छिपाया है....!
तुम्हे मंजिल तक पहुँचाने का
एकमात्र उद्देश मेरा हो,
वहाँ का आकाश,
वहाँ की खुशी,
वहाँ का सवेरा सिर्फ तुम्हारा हो..!!
आप सभी को ये ब्लॉग कैसा लगा ये आप सागर जी को उनके ब्लॉग पर जाकर अवश्य बताएं और मेरी आप सभी से ये भी प्रार्थना है की मेरे इतने intelligent स्टुडेंट को सुधरने के लिए कहिये वो तो सागर जी मिल गए जो मेरी सारी पेन्सिल मुझे दे गए वर्ना आज तो यहाँ लिखना बहुत मुश्किल था
शालिनी कौशिक
.
6 टिप्पणियां:
सच कहूँ शालिनी जी तो इस ब्लाग जगत
में आपने ही मुझे ठीक से समझा है ।
वास्तव में तो आपके ही दम का दमूङा है ।
बाकी दुनियाँ में सिर्फ़ घास कूङा है ।
शिखा मैम को चापलूसी करके ही तो
मैं M. S.M.P.SCHOOL का टापर हूँ ।
बेहतरीन दमदार प्रस्तुति ( अपनी तारीफ़ किसे
अच्छी नहीं लगती )
दम का दमूङा - ठोस बात ..सालिड मैटर
शालिनी जी बहुत सही कहा आपने सागेर जी का ब्लॉग और उनकी हर रचना बहुत ही अच्छी है... और ये कहते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है की सागर जी यानी आशीष जी मेरे बहुत खास दोस्त है... हम साथ में ही पढते है.... आपको बहुत- बहुत धन्यवाद....
bhaut bhaut thanku shalini ji mere blog ki sarahana karne ke liye... aur mera hausla badhane ke liye... thank u very very much....
बहुत सुन्दर जानकारी , बेहतर प्रस्तुति
आशीषजी आप बहुत सुन्दर लिखतें हैं ऐसे ही लिखते रहिए
बहुत रोचक प्रस्तुति .आभार
एक टिप्पणी भेजें