बुधवार, 31 अगस्त 2011

यह जो इक दर्द है मेरे भीतर

यह जो इक दर्द है मेरे भीतर 

जो रह-रह कर कसक रहा है 
सिर्फ इक दर्द ही नहीं है यह दर्द 
मेरे सुदूर कहीं भीतर से आती 
मेरी ही आत्मा की आवाज़ है 
यह जो दर्द है ना मेरा 
सो वो लाइलाज है क्योंकि 
इसका इलाज अब सिर्फ-व्-सिर्फ 
इसके सोचने की दिशा में मेरे द्वारा 
किया जाने वाला कोई भी सद्प्रयास है 
मगर मेरे मुहं से महज इक 
सिसक भरी आवाज़ निकलती है 
और इन अथाह लोगों के शोर 
के बीच कहीं गुम हो जाती है
कभी-कभी तो मेरे ही पास 
लौटकर वापस आ जाती है....
मेरा दर्द और भी बढ़ जाता है 
मेरे भीतर सिसकता रहता है 
कुछ कर नहीं पाता ठीक मेरी तरह 
और गुजरते हुए हर इक पल के साथ 
दर्द बढ़ता जा रहा है विकराल होता 
इस व्यवस्था को बदलने के लिए 
इस बदलाव का वाहक बनने के लिए 
इस बदलाव का संघर्ष करने में 
मैं इक आवाज़ भर मात्र हूँ...
बेशक आवाज़ बहुत बुलंद है मेरी 
मगर किसी काम की नहीं वो 
अगरचे सड़क पर उतर कर वो 
लोगों की आवाज़ बन ना जाए 
चिल्लाते हुए लोगों के संग मिलकर 
एकमय ना हो जाए....
और परिवर्तन की मेरी चाहना 
मेरे कर्मों में परिवर्तित ना जाए 
और बस यही इक दर्द है मेरा 
जो अब बस नहीं,बल्कि बहुत विकराल है 
मेरे भीतर छटपटा रहा है 
हर वक्त और हर इक पलछिन 
किसी क्रान्ति की प्रस्तावना बनने के बजाय 
यह दर्द बस किसी कविता की तरह लिखा जाना है
और महज किसी कविता की तरह पढ़ा जाना है...!! 

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

यह साइट आपको कैसी लगी ?

कविता और कहानियों से भरपूर एक साइट
कविता और कहानियों के लिए यह साइट हमें तो अच्छी लगी .
आपको कैसी लगी ?

http://www.lekhni.net/613228.html

युवक कवि नारी-सौंदर्य पर भी मुग्ध हुआ , कवि अपनी कल्पना की सुन्दरी बाला से स्पष्ट कहता है कि प्रकृति की अनंत सुषमा को छोड़कर मैं तेरे मांसल सौंदर्य की सीमा में अपने को कैसे बांध सकता हूँ?

छोड़ द्रुमों की मृदुल छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया

बाले! तेरे बाल-जाल में, कैसे उलझा दूं लोचन।

तज कर तरल तरंगों को, इन्द्रझनुष के रंगों को;

तेरे भ्रू भंगों में कैसे, बिंधवा दूं निज मृग सा मन।।

सोमवार, 29 अगस्त 2011

सुधा जी का ब्लॉग

सुधा   जी  का  ब्लॉग  


ब्लॉग का नाम - तूलिकासदन 


ब्लॉग स्वामिनी  का नाम  व्  परिचय  -सुश्री  सुधा भार्गव  जी 

सुधाकल्प

मेरे बारे में

कविता .कहानी संस्मरण मुक्तक ,आलेख आदि विधाओं पर मेरी लेखनी गतिशील है !पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं !विभिन्न संस्थाओं से जुडाव है !प्रकाशित काव्य -संग्रह 'रोशनी की तलाश में '!इसे डा .कमला रत्नम पुरस्कार मिल चुका है !प्रकाशित बाल पुस्तकें --१ अंगूठा चूस , २ अहंकारी राजा ३ ,जितनी चादर उतने पैर पसार !तीसरी कृति 'राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मान 'से अलंकृत हो चुकी है !प. बंगाल -की ओर से मुझे 'राष्ट्र निर्माता पुरस्कार 'मिला !


ब्लॉग का URL-http://sudhashilp.blogspot.com

मेरी   राय  - ये  ब्लॉग रचनात्मकता  की  दृष्टि  से  बहुत  सराहनीय  है  .


                   अब  आप  भी  दे  अपनी  राय 
                     पर  पहले  इस  ब्लॉग पर हो  आयें  .
                          
                                                       शिखा  कौशिक  

शनिवार, 27 अगस्त 2011

अंदाज ए मेरा: ईमानदारी और कर्मठता की नई परिभाषा............!!!!

अंदाज ए मेरा: ईमानदारी और कर्मठता की नई परिभाषा............!!!!: टेलीविजन में इन दिनों एक ही खबर दिख रही है। ये कह सकते हैं, एक ही खबर बिक रही है। बिक रही है, इसलिए कह रहा हूं कि हमारे देश के न्‍यूज चै...

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

कुछ मुद्दे....जो हमारे लिए वांछित होने चाहिए....!!


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
कुछ मुद्दे....जो हमारे लिए वांछित होने चाहिए....!!

मिस्टर राहूल,तुम्हारे कहने अनुसार अगर लोकपाल भी भ्रष्ट होगा तो तुम प्लीज़ चिंता मत करो,उसे जनता बदल देगी,ठीक उसी तरह जिस तरह आने वाले चुनावों में वह तुम समस्त लोगों को बदल देने वाली है....!!
ओ संसद के तमाम सांसदों,तुम सब जिस तरह जन-लोकपाल के प्रश्न पर जिस तरह का दोहरा आचरण कर रहे हो,उसका प्रत्युत्तर जनता तुम्हें जल्द ही देने वाली है,तुम जैसे तमाम सांसदों का अबकी बार संसद से सफाया होकर ही रहेगा,तुम्हारा धनबल,बाहुबल या कोई भी छल-कपट तुम्हें नहीं बचा पायेगा...!!
एक अपील हम जनता से....आने वाले चुनावों में वह साफ़-स्वच्छ छवि वाले वाले उम्मीदवार को हो अपना मत दे,ऐसे किसी को उम्मीदवार को वह धन आदि की कमी के चलते हारने ना दे,उसे भरोसा दे,और इतना ही नहीं उसके जीतते ही उसके घर जाकर उसे बधाई देने के पश्चात उस पर जनता के लिए कार्य करने का नैतिक दबाव बनाए...!! 
अब जनता आने वाले दिनों में अपने-अपने क्षेत्र के सांसदों से उसके किये-धरे का चिठ्ठा मांगे,और जिसने जो कुछ भी अवैध अर्जित किया हो,उसकी बाबत सवाल पूछे,उसका समुचित उत्तर ना मिल पाने पर उस सांसद का क्या करना है उसके बारे में मिल बैठ कर सोचे...!! 
यह भी बड़ी अजीब बात है की आप चोरी करो,डाका डालो,लड़कियों के साथ बिस्तर गर्म करो,देश की सुरक्षा तक के साथ खिलवाड़ करो,देश का धन बाहर ले जाओ...अपना ही घर बस भरते जाओ,भरते जाओ,भरते जाओ और हम कुछ कहें या पूछे तो कहो यह अशोभनीय है,यह भाषा अनुचित है,असंसद्नीय है ,तो अब तुम्ही बताओ हमें ,क्या उचित है,क्या अनुचित !!
दोस्तों, भारतमाता किसी अन्ना के बहाने से आप-हम-सबे दिलों पर यह दस्तक दे रही है,के हम भी अब सुधर जाएँ,बदल जाए और एक हद तक सच्च्चरित्र हो जाएँ(क्यूंकि हम भी तो पूरा नहीं बदल सकते...!!??)सिर्फ दूसरों को गरियाने से कुछ नहीं बदलेगा,हरेक चीज़ के इकाई हम खुद हैं,हमें खुद को जिम्मेदार-सभ्य और निष्कलंक नागरिक बनना होगा...!!
अगर सच में ही हम खुद को भारतीय कहतें हैं,तो भारतीयता के निम्नतम कसौटी के ऊपर खुद को कसना होगा,एक नागरिक के रूप में हमारे भी क्या कर्तव्य हैं,उन्हें पूरा करना ही होगा,वरना एक जन-लोकपाल तो क्या एक लाख लोकपाल या जन-लोकपाल भी रत्ती-भर मात्र भी कुछ नहीं उखाड़ पायेंगे,आन्दोलन का रोमाच एक बात है...और खुद को बदलना बिलकुल दूसरी बात..!!
हमारे ह्रदय में हमारी आत्मा में क्या पक रहा है,इसी पर देश का भविष्य सुनिश्चित है,हम खुद को कुछ बनाना चाहते हैं,या देश को सचमुच कहीं ले जाना चाहते हैं,यह बिलकुल स्पष्ट तय नहीं है तो इस आन्दोलन-वान्दोलनों का कोई अर्थ नहीं है ,सिर्फ हमारी खुद के गुणवत्ता ही देश को वाजिब उंचाई प्रदान कर सकती है..!! 
अब सिर्फ यही आत्म-मंथन करना है,के हम क्या थे,क्या हैं,और क्या होंगे अब....!!सिर्फ एक नेक विचार देश को नयी उंचाईयां प्रदान कर सकता है,क्या कुछेक विचारों पर सोचने को,उन्हें अपने दिल में जगह देने को,उन पर चलने को हम तैयार हैं....??
अन्ना एक निमित्त बन चुके...अब आगे का काम तो हम अरबों लोगों का ही है,सत्ता के लोगों का अहंकार संभवतः अन्ना को "भूतकाल"में परिणत कर दे, क्योंकि डोलते हुए भयभीत सांसदों से अब शायद कोई उम्मीद ही नहीं के सकती,तो अगर अना ना रहें तो हमें क्या करना है....!!????
प्रश्न तो ढेर-ढेर सारे हैं....आर उत्तर खुद हमारे ही भीतर....उत्तर ढूँढ लें,समस्याएं स्वतः ही हल हो जायेंगी,यह समय आन्दोलन से अधिक अपने भीतर झाँकने का है,खुद को सही दिशा प्रदान करने का है....!!
हर तरफ-हर जगह यह लिखा हुआ पाया जा रहा है,मैं अन्ना हूँ,मैं अन्ना हूँ,मैं अन्ना हूँ....ज़रा सोचिये...एक अन्ना ने एक आंधी पैदा कर दी है...हम सब यदि अन्ना हो गए,तो फिर देश को उंचाईयों पर पहुँचते देर ही कहाँ लगेगी...!!

बुधवार, 24 अगस्त 2011

अब अगर अन्ना को कुछ हुआ तो.......!!

अब अगर अन्ना को कुछ हुआ तो.......!!
             दोस्तों कल रात टीम-अन्ना के साथ हुई बातचीत को सत्ता के अहंकार ने विफल कर कर दिया है,क्योंकि सभी दलों के सांसदों के साथ हुई बातचीत में हमारे देश के,हमारी सेवा करने के लिए हमारे द्वारा चुने गए हमारे जन-प्रतिनिधियों ने बेमिसाल और अपूर्व एका दिखाया....उससे हमारे द्वारा नियुक्त किये गए इन जन-प्रतिनिधियों 
की स्वार्थ-मंशा बिलकुल साफ़-साफ़ उजागर होती है,और यह भी स्पष्ट होता है कि संसद और विधानसभाओं में भेजे गए हमारे जन-प्रतिनिधियों ने राजनीति को स्पष्ट तौर पर अपना पेशा बना लिया है और इस पेशे से पर्याप्त लाभ बटोरने के लिए अब वे किसी भी हद तक जा सकते अथवा उसे पार कर सकते हैं....और यही कारण है कि लगभग समस्त सांसदों के सूर इस भयानक मुद्दे पर जनता की राय के बिलकुल विपरीत हैं....उस जनता के हिमायतियों को ये नपुंसक-स्वार्थी और कायर लोग नकार और धिक्कार रहें हैं....जिनके बूते ये (हरामखोर!!)लोग आज सत्ता पर आसीन है....और मजा यह कि हमहीं पर शासन भी कर रहें हैं...मगर केवल यहीं तक होता तो जनता बर्दाश्त भी करती....मगर जिन्होंने बरसों-बरस से देश और राज्यों में शासन के स्थान पर सिर्फ-व्-सिर्फ लूट और खसोट ही की है....और तो और अब तो पिछले कुछेक बरसों से तो ये साहिबान तो मवालीगिरी भी करते चले आ रहे हैं...उस सत्ता का ऐसा दंभ...!!कि वह एक संत-एक निस्वार्थी सामाजिक कार्यकर्ता की बिना अन्न-जल ग्रहण किये हुए आन्दोलन की आवाज़ ही अनसुनी कर दे....??अगर ऐसा है तो अब हमें भी ऐसी सत्ता और इस जैसी समस्त सत्ताओं को उसकी औकात बता ही देनी चाहिए...!!और साथ ही अपनी....यानी अरबों की अपनी इस जनसंख्या की ताकत का अहसास भी.....!!
                  दोस्तों....अब तक तो हम इस देश का अन्न खाते आयें हैं...इसका दिया हुआ वस्त्र हमने पहना है....इसीकी मिटटी पर हमनें मल-मूत्र भी त्यागा है....मगर इसकी सरजमीं ने हमें आसरा दिया है....और इसके गौरव से हम खुद गौरवान्वित महसूस करते चले आयें हैं...तो फिर आज वक्त का यह तकाजा हो गया है....कि अब अपने छोटे-छोटे स्वार्थों को ज़रा-सी देर के लिए भूल-भाल कर इस देश के कूड़े-कचरे को साफ़ करने के लिए किये जा रहे इस आन्दोलन का साथ देने के लिए हम भी उठ खड़े हों....!!यह इस करून वक्त की पुकार है....कि एक व्यक्ति हमारे लिए खुद को मिटाने की कगार पर पहुँच चुका हो....और हम सब सिर्फ अपने स्वार्थ की नालियों में कीड़ों की तरह निमग्न रहें...अगर ऐसा हुआ तो इतिहास भले हमें माफ़ कर दे...मगर हमारे खुद के बच्चे तक भी हमें माफ़ नहीं करेंगे...!!
                अन्ना का आन्दोलन इस देश के इतिहास का वह मोड़ है...जहां से जनता ही इसे वह राह-वह दिशा प्रदान कर सकती है...जहां जाने और जिस जगह को पाने के लिए इस देश के विवेकवान लोगों की अंतरात्मा कराहती रही है....भारतमाता का ह्रदय छटपटाता रहा है...!!अरबों भूखे-नंगों लोगों के इस देश को और भी कंगाल बनाने पर उतारू रहें हैं सदा से मुट्ठी भर लोग....इन मूठी भर लोगों का क्या हश्र किया जाना चाहिए....अब यह हम सबको बैठकर तय करना ही होगा...और यह भी अभी की अभी ही....!!अब अन्ना हजारे सिर्फ एक व्यक्ति नहीं....एक नारा हैं....एक सैलाब है....एक आंधी हैं....एक तूफ़ान हैं....और अगर इस बहाव में हम सब नहीं उठ खड़े होंगे तो सच बताऊँ....??हमपर धिक्कार होगा...और वतन पर एक बहुत बड़ी प्रताड़ना...!!
                इसी वक्त इस आन्दोलन को एक भीषण जन-आन्दोलन में तब्दील कर डालना होगा...व्यवस्था परिवर्तन-सत्ता-परिवर्तन....और अपने खुद के आचरण में भी आमूल-चूल परिवर्तन के लिए अब हमें अपने मन में ठान लेनी चाहिए....!!एक बार इस सत्ता के अहंकार को उसकी औकात बताने के लिए एक दिन के लिए समूचा देश बंद कर अरबों लोगों को एक साथ सड़क पर आ जाना चाहिए....हरेक सांसद-विधायक-ठेकेदार-अफसर और हमारी दृष्टि भी जो भी भ्रष्ट कर्मी है....उसका घेराव कर सत्ता को सुस्पष्ट सदेश देना ही होगा कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है....कि सिंहासन खाली करो जनता आ रही है....और अब भी तुम नहीं हते या बदले तो यही जनता तुम्हारे सीने पर मूंग डालेगी.....जिसकी छाती पर तुम इतने बरसों मूंग डालते आये थे....!!
                   जाते-जाते एक नसीहत सत्ता और उसके सहयोग से नाच रहे समस्त लोगों को कि बेशक अब उनकी नज़र में अन्ना का अनशन उनकी अपनी निजी समस्या है...मगर अन्ना को अब कुछ भी हुआ तो......तो....तो....!!!!

सोमवार, 22 अगस्त 2011

मेरे सपने मेरे गीत -A NEW BLOG

ब्लॉग का नाम-मेरे सपने मेरे गीत 


ब्लॉग -स्वामिनी -डॉक्टर सुशीला गुप्ता 


ब्लॉग-स्वामिनी का parichay-I am Dr.Sushila Gupta M.A.,Aacharya, Ph-d and Writer..Poem, Gazal,Stories,Articles(Struggle for lecturership) ) i think that honesty is the best policy I believe only गोद
                                    मेरा फोटो
ताजा-प्रस्तुति -
                 


बुधवार, १ जून २०११

प्यारी भाभी

 भाभी! तुम पे बहुत
 प्यार आता है |
तुम्हारे  सिवा अब
न कोई भाता है ||

दिया प्यार तुमने
इतना मुझे |
जैसे हमारा,
वर्षों का नाता है || 

नहीं कोई शिकवा,
शिकायत मुझे |
हूँ आज खुश जो,
इनायत तेरी ||

श्रद्धा करूँ,तेरी भक्ति करूँ,
तेरे लिए, निशि-दिन मरुँ ||
तुझमे समाहित है मन मेरा,
है आज गद-गद ये दिल मेरा ||

खुशियाँ हो दामन में,तेरे सदा,
आंसूं न देना,ऐ मेरे खुदा ||
व्याकुल है दिल,होके तुमसे जुदा,
सबसे निराली है,मेरी भाभी की अदा ||

मेरी  राय -सुशीला जी  की भावाभिव्यक्ति बहुत सशक्त है व हर पोस्ट हेतु विशेष  विषय -चयन उनके ह्रदय की भावुकता को प्रकट  करता  है.उनकी सफलता हेतु हार्दिक शुभकामनायें .
                             ब्लॉग पर जाकर आप भी उनकी भावाभिव्यक्ति का आनंद लें .
                                                     शिखा कौशिक 

रविवार, 21 अगस्त 2011

हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल के बारे में (Shikha Kaushik's Opinion)

Saleem Khan & Anwer Jamal Khan
प्रेरणा अर्गल जी और डॉ.अनवर जमाल जी की ये संयुक्त प्रस्तुति बहुत ही सार्थक पहल है और जिस शालीन ढंग से यहाँ ब्लोग्स की पोस्ट की चर्चा की जाती है वह सारे ब्लॉग जगत में सराहनीय है.सही कहा कि जब त्यौहार साथ साथ हो सकते हैं तो हम उन्हें साथ साथ मनाने से गुरेज़ क्यों करें.हम तो अपने बचपन से ही सारे त्यौहार साथ साथ मनाते रहे हैं और यदि ईश्वर की और इस धरती पर बसे सत्पुरुषों की कृपा दृष्टि यूँ ही बनी रही तो सारी जिंदगी हम मिल जुल कर ही अपने जीवन को हंसी ख़ुशी बिताना चाहेंगे.

ब्लॉगर्स मीट वीकली (5) Happy Janmashtami & Happy Ramazan

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

जनता की आवाज़ बनाये आज अपनी आवाज़

कल की ही बात है भड़ास ब्लॉग पर जाना हुआ वहां एक नए ब्लोगर की टिपण्णी देखी टिपण्णी के माध्यम से उनके प्रोफाईल पर जाना हुआ तब ज्ञात हुआ कि ये महोदय तो   से हैं  पहले आप इनके ब्लॉग का  url  नोट कीजिये-
ये  ब्लॉग है सैय्यद  फैज़ हसनैन का 
और नाम ही नहीं वे लिखते भी अपनी कलम  से जनता की आवाज़ ही हैं विश्वास न हो तो आप  उनके ब्लॉग की एक एक  पोस्ट का अवलोकन कर मेरी बातों की सत्यता को  परख सकते हैं तो   क्लिक  कीजिये लिंक   को और देखिये मीडिया से जुड़े एक और ब्लौगर   के    उत्कृष्ट  विचार..
                  शालिनी   कौशिक



Wednesday, April 27, 2011


"२६ जून की दुविधा "

बताइए न सर मै क्या करू किस की परीक्षा दू ...मै तो परेशां हो गया हो । सरकार कहती है की हर छात्र सभी प्रतियोगी परीक्षा को दे सकता है अगर वो उसके नियमो का पालन करता है तो पर ये कैसी परीक्षा प्रणाली है की एक ही दिन में ४-४ प्रतियोगी परीक्षा हो रही है । ........

ये उस छात्र की दुविधा है जिसने इस वर्ष UGC NET , SSC , CBSE TET और UPPCS की प्रतियोगी परीक्षा का आवेदन किया है अब वह क्या करे इनमे से कौन सी परीक्षा दे या छोड़े । सब एक ही दिन यानि २६ जून २०११ दिन रविवार को हो रही है । ....

भारत सरकार क्या कर रही है , क्या वो इस तरह छात्रो के भविष्य से खिलवाड़ तो नहीं कर रही । आखिर क्यों ऐसा हुआ क्या इन प्रतियोगी परीक्षाओ की समितियों मे कोई भ्रष्ट समझौता हुआ है क्या ? आखिर इस तरह छात्रो के भविष्य से क्यों खिलवाड़ हो रहा है .........

मुझे जवाब चाहिए


मंगलवार, 16 अगस्त 2011


अब भी अगर तूफ़ान नहीं आयेगा 
देश फिर कभी खडा ना हो पायेगा !!  
गिरफ्तार करने से क्या होगा उसे 
इससे तो और माहौल बन जाएगा !!
जो लोग"राजपाट"का गुरुर करते हैं 
समय खुद ही उन्हें निगल जाएगा !!
ये वक्त अगर गलत भी है दोस्तों 
ये वक्त भी आखिर बदल जाएगा...!!
ये राजा इक ऐसा कमजोर राजा है 
हालात को संभाल ही नहीं पायेगा !!
चलो "गाफिल"तुम भी राजघाट पे 
सूना है अभी वहां जलजला आयेगा !!

सोमवार, 15 अगस्त 2011

आइये स्वतंत्रता दिवस मनाएं ''''अपनी आवाज़'' '' में

आइये स्वतंत्रता दिवस मनाएं ''आवाज़  अपनी '' में क्यों कुछ विचित्र लगा .आज जब कोई भारत में अपनी आवाज़ की बात करता है तो ऐसा विचित्र ही अनुभव होता है.ज़रा तब सोचिये क्या लगा होगा जब लाहौर   षड्यंत्र  कार्यवाही  में विशेष ट्रिब्यूनल  के समक्ष ५ मई १९३० को शहीदे आज़म भगत सिंह ने अपनी आवाज़ में कुछ यूँ कहा होगा-
''वतन की आबरू को पास देखे कौन करता है,
सुना है आज मकतब में हमारा इम्तहाँ होगा .
इलाही वह भी दिन होगा जब अपना आसमां देखेंगे,
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमां होगा.''
              और आज ऐसी ही कुछ आवाज़ नजर आ रही है श्री तरुण भारतीय जी के ब्लॉग ''अपनी आवाज़'' श्री तरुण भारतीय जी अपने बारे में लिखते हैं-

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मै भारत का रहने वाला ,भारत माँ का बेटा हूँ, माँ भारती कि सेवा के लिय हर समय तत्पर हूँ ,बस यही मेरा परिचय है | संपर्क सूत्र - 09829900396
आज स्वतंत्रता दिवस की ६४ वीं वर्षगांठ पर उनके उद्गार कुछ यूँ प्रगट हुए हैं और इनमे पूरी सच्चाई है मैंने तो यही महसूस किया है शायद आपको भी यही अनुभव हो देखिये उनका आलेख आप के लिए मैं यहीं ले आई हूँ-

14 August 2011

64 सालों कि गुलामी

 चारों तरफ स्वतंत्रता दिवस मनाने कि तैयारियां चल रही हैं,बहुत लंबे और लुभावने वादे देश के नेता कर रहे हैं |व बहुत जगह पैसे को पानी कि तरह इस दिवस के नाम पर बहाय जा रहा है | इससे पहले कि आप भी इस जश्न को मनाने के लिय व्यस्त हो जाए | जरा सोचे कि स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं या परतंत्रता दिवस | क्या आपने कभी ये सोचा कि क्या देश स्वतंत्र है ? स्वंतंत्रता का सीधा सा अर्थ होता है, स्व यानि खुद का और तंत्र यानि शासन | हमारे भारत देश में शासन तो है लेकिन जरा इस बात पर गहनता से विचार करना कि ये शासन हमारा है या पराया | अब बात साफ़ है कि आज इस देश में जो शासन प्रणाली चल रही है वो हमारी नहीं है , देश उसी सिद्धांत पर चल रहा है जैसे अंग्रेज चलाया करते थे बस परिवर्तन इतना ही हुआ कि पहले अंग्रेज शासन करते थे और अब उसी सिद्धांत पर इस देश के वो लोग राज करते हैं जो शरीर से भारतीय हैं लेकिन मानसिकता से अंग्रेजियत भरी पड़ी है | विषय बहुत लंबा है परन्तु मुख्य रूप से बहुत से ऐसे उदाहरण हमारे सामने है जिनको जानकार व समझकर पूरी प्रमाणिकता से कहा जा सकता है कि भारत में आजादी आई नहीं है |हाँ सही मायेने में हम आजाद हुए ही नहीं हैं |
पूरी दुनिया के आजादी के इतिहास कि मैं बात करूँ तो ये इतिहास रहा है कि दुनिया में जो भी देश गुलाम रहकर , आजाद हुआ है उसने आजाद होने के बाद सबसे पहले जो काम किया वो है उस देश ने अपनी शिक्षा व मातृभाषा को अपनाया है | क्योंकि शिक्षा व्यवस्था व भाषा किसी भी देश के विकास में रीढ़ कि हड्डी का कम करती हैं |सोचने समझने कि जो क्षमता मातृभाषा में विकसित होती है वो विदेशी या अन्य भाषा में उतनी नहीं हो पाती है | हमारे सामने अमरीका का उदाहरण सामने है, कि अमरीका ने जो ऊँचाई पाई है | उसके इतिहास का हम जब अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि २०० साल पहले तक उसका इतना ज्यादा कोई अस्तित्व नहीं था |परन्तु 1776  के बाद अमरीका ने जो ऊंचाई पाई है उसका प्रमुख कारण यही रहा है कि उसने आजाद होते ही अपने देश कि भाषा व शिक्षा व्यवस्था को अपनाया | इसी तरह चीन का उदाहरण हमारे सामने है |1949 में चीन में जो सांस्कृतिक क्रांति हुई जिसका नेता माओ था माओ ने जब चीन को बदला तो सबसे पहले उसने देश कि भाषा व शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया | इसी तरह जापान, क्यूबा ,स्पेन ,डेनमार्क व कई अन्य देशो का उदाहरण हमारे सामने हैं |
भारत के संदर्भ में देखे तो यहाँ बिलकुल उल्टा चित्र नजर आता है | 1840 में अंग्रेज अफसर मैकाले ने जो शिक्षा व्यवस्था इस देश में भारतीय संस्कृति व सभ्यता को नष्ट करने के लिय व हम सब को मानसिक गुलाम बनाने के लिय बनाई थी वो आज भी इस देश में चलती है | उच्च शिक्षा का जो पाठ्यक्रम अंग्रेजो ने इस में लागू किया था वो लगभग 140 वर्षों से चल रहा है |
और अफ़सोस और दुःख कि बात तो यह है कि मैकाले ने हमारे इतिहास में जो विकृतियाँ डाली थी वो आज भी इस देश कि भावी पीढ़ी को पढाया जाता है |और इससे भी दुःख कि बात यह कि अंग्रेजो इस देश में जो परीक्षा प्रणाली इस देश में लागू करके गए थे वो उनके देश में नहीं चलती है | इसका मतलब सीधा सा यही है कि अगर वो अच्छी ही होती तो वो खुद भी अपनाते |
एक दो और उदाहरणों से बात स्पष्ट होती है कि भारत देश को लूटने और नागरिको पर अत्याचार कने के उदेश्य से अंग्रेज जो कानून बनाकर इस देश में गए थे वही कानून इस देश में चलते है और उनका दुरूपयोग होता | जिसका परिणाम यह कि हमारे देश कि न्यायपालिका सही न्याय नहीं कर पाती है |मात्र फैसला देने में ही वर्षों लग जाते हैं |1857 कि क्रांति होने के बाद जब अंग्रेजो को दर सताने लगा था कि भारतीय नागरिको को यदि काबू में नहीं किया गया तो वे हमारे शासन को जड़े जल्द ही उखाड़ फैकेंगे | भारतीयों कि आवाज को दबाने के लिय अंग्रेजो ने पुलिस बनाकर एक कानून बनया था जिसका नाम था इंडियन पुलिस एक्ट | इस कानून में साफ़ साफ़ लिखा था कि कोई भी अंग्रेज अधिकारी भारतीय नागरिको पर लाठी चार्ज कर सकता है और भारतीयों को यह अधिकार नहीं होगा कि वो इस इस एक्शन ले सकें | और आज 1947 में अंगेजो के जाने के बाद भी भारत देश में यह कानून चलता है और हालात यह हैं कि जब भी किसान , मजदुर , कारीगर या अन्य भारतीय सरकार से शांति पूर्वक अपने हक कि बात को कहने के लिय कोई आंदोलन या जुलुस करते हैं तो आज भी सरकारें इस कानून कि मदद से हमारे देश में हमारे ही नागरिको पर लाठियां बरसवाती  हैं | क्या हक माँगना गुनाह है ? आब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि असली में आजादी आई है या आज भी भारत परतंत्र है अंग्रेजियत शासन व्यवस्था का |
अंग्रेजो ने भारतियों को लूटने के मकसद से जो टैक्स प्रणाली भारत में चलाई थी वाही आज इस देश में चलती है |इनकम टैक्स , सेल टैक्स , टोलटैक्स, रोड टैक्स इस तरह से लगभग २३ प्रकार के टैक्स इस देश में लगाये थे उनके हालत यह हैं कि आज भारत में 64 प्रकार के टैक्स लगते है और दुःख कि बात यह कि देश के 84 करोड लोग मात्र २० रूपये पर अपनी जिंदगी गुजारते हैं और उनमे से लगभग ८० लाख लोग दो वक्त के खाने को मोहताज हैं|अब आप खुद फैसला किजीय कि भारत में आजादी आई है या 64 सालो कि गुलामी को झेला है |
इस तरह से बहुत से कानून जैसे इंडियन फोरेस्ट एक्ट , इंडियन एक्युजिशन एक्ट(भूमि अधिग्रहण कानून ) व अन्य हैं जो उसी तर्ज पर चलते हैं जैसे अंग्रेज बनाकर गए थे  अब कुछ बात अर्थ व्यवस्था कि करें तो हालत यह हैं कि अंग्रेजो कि लगभग 200 से ज्यादा सालो कि गुलामी सहन करने के बाद भी 1947-48 में जब अंग्रेज इस देश से चले गए थे तब भारत पर १ पैसे का भी कर्ज नहीं था परन्तु आज हालत यह हैं कि भारत का प्रत्येक नागरिक लगभग 18 हजार से भी ज्यादा रूपये का कर्ज दार हो गया है जो कि सरकारे हमसे टैक्स के माध्यम से हर साल वसूलती हैं |
भारत जब 1947 में आजाद हुआ था तब आयत निर्यात का घाटा २ करोड का था आज वही घाटा 17 हजार करोड से भी ज्यादा का हो गया है तो हम कैसे कह दें कि भारत आजाद है |
जो गेहूं देश के नागरिकों को 5 से 6 रूपये किलो मिल जाया करता था वही अनाज आज 18 से २० रूपये किलो मिलता है और देश के किसानो पर कर्ज लगातार बढ़ रहा है तो ये विकास है या विनाश ये फैसला आप खुद कर सकते हैं |

हालाँकि विषय बहुत लंबा है बहुत सी ऐसी और बाते हैं जो ये साबित करती हैं कि भारत के नागरिको पर वही शासन व्यवस्था चलती है जो अंग्रेजो ने बनाई थी बस फर्क इतना से सा है कि पहले गोरे अंग्रेज शासन करते थे और आज काले अंग्रेज करते हैं | देशवासियों अगर आप सच में इस देश को व अपने आप को आजाद करना चाहते हो तो आओ सब मिलकर व्यवस्था परिवर्तन में सहयोग दो और बदल दो इन गुलामी कि मानसिकता व शासन प्रणाली को |एक बात  हमेशा यही याद रखना परिवर्तन करने के लिय समय कि नहीं संकल्प कि आवश्यकता होती है |
 
एक अज्ञात शायर का ये शेर मुझे उनके इस आलेख को बल देता महसूस हुआ है -
''खूने मासूम बहाने वालों,
       ऐशो आराम की हद लहद  होती है.
अपना भी कौल है काले-मुज़फ्फर सुन लो,
      ज़ुल्म सहने से भी कातिल की मदद होती है.''
माँ भारती के ये बेटे आज जो  अपनी आवाज़ के माध्यम से सोये हुए भारतीयों को जगाने का प्रयत्न कर रहे हैं यह हम सभी की सराहना के हकदार हैं और आप एक बार उनके ब्लॉग पर जाकर मेरे शब्दों की सच्चाई परख सकते हैं .उनकी भावनाओं की क़द्र करते हुए मैं अंत में एक और अज्ञात शायर के शब्दों में बस यही कहूँगी-
''अब कलम तलवार होनी चाहिए,
    शब्द की सरकार होनी चाहिए.''
                शालिनी कौशिक

रविवार, 14 अगस्त 2011

स्वतंत्रता दिवस और प्रदीप जी की कविता का अंतर्द्वंद

देश का स्वाधीनता   दिवस हो और देश वासियों के दिलों में ख़ुशी न हो ये वास्तव में दुखद है किन्तु देश की वर्तमान स्थितियां आज हर भारतीय को सोचने पर विवश कर रही हैं की क्या यही वह आज़ादी है जिसे पाने को चंद्रशेखर आज़ाद,भगत सिंह,मंगल पाण्डेय ,रामप्रसाद बिस्मिल सरीखे वीरों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए .कितनी ही माओं की गोद  सूनी हो गयी कितनी ही बहनों की राखी घर में रखी रह गयी कितने ही पिताओं  की आँखें अपने पुत्र की राह देखते देखते पथरा गयी पर आज का सच यही है और इसके लिए अन्ना हजारे , किरण बेदी ,अरविन्द केजरीवाल जैसे सेकड़ों भारतीय एक मन हो उठ खड़े हुए हैं और स्थितियों  में फेर बदल को कमर कस लिए हैं किन्तु ये क्या एक हमारे ''राजीव कुलश्रेष्ठ जी '' हैं जो इस सबसे बेखबर अपनी कटोरी देवी जी के साथ बहुत प्रसन्नता के साथ स्वतंत्रता दिवस  मनाने में लगे हैं देखिये हम ऐसे ही नहीं कह रहे हैं-

हमने जब राजीव जी और कटोरी देवी जी को इतनी प्रसन्नता से स्वतंत्रता दिवस  की खुशियाँ मनाते देखा तो वे कहने लगे कि हम ज्यादा सोच सोच कर परेशान होने वालों में नहीं हैं और हमें तो आश्चर्य है कि भारत की जनता जब देखो कुछ न कुछ सोच कर परेशान होती रहती है .जब खुशियाँ मनाने का समय है तब तो दुखी हो जाओ और बाद में कहते फिरो कि हमें भगवान ख़ुशी नहीं देता हम तो ऐसे नहीं हैं और आप को ये जानकर आशचर्य होगा कि वे तो पीछे ही पड़  गए हमारे हाथों में कैमरा देख कर और कहने लगे कि जल्दी से आप हमारी और फोटो लीजिये और अगर हो सके तो कल के अख़बार में सबसे ऊपर लगा दीजियेगा  ताकि और लोग भी हमसे प्रेरणा लें .हमने कहा कि राजीव जी आप तो भूल गए हमें हम कोई अख़बार वाले थोड़े ही हैं जो देश वासियों के उत्साही और निराश चेहरों के फोटो खींचते फिर रहे हों हम तो अपना कैमरा ठीक करने निकले थे और  आप दिखाई दे गए तो आपकी ख़ुशी का राज़ जानने आ गए.पर हद ही हो गयी वे तो हमें फोटो न खींचने पर श्राप देने पर उतारू हो गए और हमें फिर मन न होते हुए भी उनकी एक फोटो लेनी ही पड़ी
बाद में ये कहते हुए ही उन्होंने हमारा पीछा छोड़ा कि हम ये फोटो उनके पास ज़रूर भेज देंगे.एक और राजीव जी और एक और हमारे प्रदीप जी दोनों में कितना अंतर है एक खुशियों को मनाने में लगे हैं तो एक अंतर्द्वंद में उलझे  हैं प्रदीप   जी की कविता देश के प्रति उनकी चिंता को दिखाती है और दिखाती है वर्तमान को जो वास्तव में हमें खुशियों से मुहं मोड़ने को प्रेरित करता है .आप भी जाइये और देखिये उनके ब्लॉग मेरी कविता  पर उनके अंतर्द्वंद को url  है-


प्रदीपजी का परिचय कुछ यूँ है जो वे अपने ब्लॉग पर संक्षेप में बताते हैं-

मेरा परिचय:-

My Photo
बोकारो, झारखण्ड, India
बताइयेगा आकर कि कहाँ तक आप उनके अंतर्द्वंद से सहमत हैं और कहाँ तक उनकी मदद कर पाए हैं इस अंतर्द्वंद से उबरने में- मैं तो प्रदीप जी से डॉ.राही निज़ामी जी के शब्दों में यही कहूँगी-
''वतन की अजमतों के जो हैं दुश्मन,
      इरादे उनके तू बेजान कर दे
.तिरंगा है वतन की शान या  रब   ,
        इसे   कुछ और भी जी शान कर दे.''
                     शालिनी कौशिक
                       

बुधवार, 10 अगस्त 2011

हर चीज़ से झांका करता है हमारा चरित्र !!


हर चीज़ से झांका करता है हमारा चरित्र !!
राह में चलते हुए कहीं पर भी थूक देते हुए.....
अपने घर या दूकान को बुहार कर 
उसका कूड़ा सड़क पर फ़ेंक देते हुए....
कहीं भी अपना वाहन कैसे भी खडा कर
पूरा रास्ता जाम कर देते हुए....
किसी भी कमजोर,बृद्ध,बच्चे या स्त्री 
के साथ असामान्य व्यवहार करते हुए.... 
किसी जान को फटकारते हुए या 
किसी भीखमंगे को दुत्कारते हुए....
अपने नौकर या दाई को लतियाते हुए....
किसी भी कन्या-स्त्री-युवती को घूरते हुए 
किसी भी बात पर सीधे झगड़ने को आतुर होते 
खुद जो धत्त्करम कर रहे हैं हम...
ठीक उसी कार्य को किसी और के करने पर 
उसकी ऐसी की तैसी करते हुए....
स्त्रियों की दलाली करते हुए.....
लालच के लिए खाने की चीज़ों और 
यहाँ तक कि दवाओं में मिलावट करते हुए....
लोगों के अंगों की तस्करी करते हुए....
जमाखोरी या कालाबाजारी करते हुए...  
समूचे देश को अपने थूकों का गटर 
सारी सडकों को अपने कूड़े का ढेर बनाते हुए 
तरह-तरह के षड़यंत्र करते हुए......
यह लिस्ट बहुत ही लम्बी है....
थोड़े लिखे को ज्यादा समझ लेना 
कि हर वक्त हुक्मरानों को गरियाते हुए हम 
मोहल्ले-शहर-राज्य-देश में रहने वाले हम सब 
खुद भी किस चरित्र के हैं....यह ज़रा झाँक लें 
नेताओं-मंत्रियों-अफसरों से कम या ज्यादा.....??
हम जो प्रति क्षण करते हैं हैं दोस्तों 
उस हर-एक बात से झांकता है हमारा चरित्र....!!
हम सब यदि कर सकें खुद की ज़रा-सी भी रद्दो-बदल
तो बदल सकता है इस देश का चरित्र....
कि सिर्फ गरियाने से कुछ भी नहीं बदलेगा....
जिस किसी भी चीज़ में थोड़े से भी जिम्मेदार हैं हम 
उसकी जिम्मेदारी हमें खुद को लेनी होगी 
और बदल डालना होगा खुद को उसकी खातिर 
हमारी हर बात से झांका करता है हमारा चरित्र.....
और यह बात शायद हम नहीं जानते.....!! 

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

बाप बङा ना भैया सबसे बङा रुपैया - मनीषा

कसम से मनीषा जी का परिचय पढकर मुझे बहुत बोरियत आयी । बिकाज वे कहती हैं - माँ के शिक्षक होने से बचपन से ही पढने लिखने की आदत हो गयी ।.. लो कर लो बात । भैया मेरी माँ भी शिक्षिका थी । उनकी सगी भाभी तो यूनिवर्सिटी की डीन हैं । घर में बहन बहनोई etc सभी शिक्षक ही भरे हैं । मगर मजाल " राजीव बाबा " ने काले अक्षर और भेंस में कभी कोई फ़र्क समझा हो ।
बिकाज माय शिखा मैम सेस - अम्मा जी का घी किताबें चाटने में वेस्ट करोगे । जाओ स्ट्रीट लाइटें फ़ोङो । लोगों की खिङकियों के शीशे तोङो etc अरे क्रांतिकारी क्या ऐसे ही बनोगे ?
खैर..आगे मनीषा जी बोलिंग - पति ने उत्साह जगा दिया ।..अब भैया आपके पति हैं । तो उन्होंने उत्साह जगा दिया । यहाँ तो कोई पति ( की विलोमिनी ) है ही नहीं । फ़िर जोश कैसे आये ?
आगे तो सब ठीक है । बस इनकी एक बात और खटकी - अध्यापन में मन लगाया । पर मज़ा नहीं आया । लो फ़िर कर लो बात । अरे मनीषा जी आप हमारे M.S.M.P.S ( made super made public school ) में पढाकर देखतीं । आपको पढाने में क्या पढने में भी मजा आता ।
हमारे स्कूल की शुभ प्रार्थना ( रोज नयी और ऐसी ही ) ही - ये ईलू ईलू क्या है ? गाकर शुरू होती है । फ़िर पहला पीरियड - ओ मुन्नी रे । तेरा गली गली में जलवा रे । इस तरह का होता है ।
हमारी नैतिक शिक्षा की मैम विद डांस इस तरह टीच करतीं हैं - पढना लिखना छोङो । नैनों से नैना जोङो ।
अब मनीषा जी आप खुद समझदार हो । फ़ुल्ली छुट्टी का घण्टा पियोन छह छह बार बजाता है । पर हमारे एडूकेशन लवर सटूडेंट सकूल से जाने का नाम ही नहीं लेते । डण्डा से भगाओ । फ़िर भी नहीं भागते । और आप कहती हो - अध्यापन में मजा 


नहीं आया । कोई होपलेस टायप सकूल रहा होगा । इसलिये ।
हाँ वाकिंग वाकिंग आपकी एक बात और - रूपए पैसे से रत्ती भर भी मोह नहीं । अरे भैया ! मोह नाहीं । तो काहे ऐसा फ़ालतू चीज अपने पास रखती हो । हमको दे दो । हम फ़ालतू चीज का बहुत शौकीन हूँ ना ।
खैर..ऐसी यूनिवर्सल वैल्यूबल रिपोर्टिंग तो मैं आपको देता ही रहता हूँ । इसलिये फ़िलहाल आप मनीषा जी से मुलाकात करिये ।
मनीषा जी का परिचय उनके ही शब्दों में - माँ के शिक्षक होने के कारण बचपन से ही घर में पढ़ने लिखने के माहौल ने पढ़ने की आदत डाल दी और मीडिया से जुड़े पति के साथ ने लिखने का उत्साह जगा दिया । शायद यही कारण है कि न्यूज़ में दिलचस्पी बढ़ती गयी । और पढ़ने लिखने का यह नशा ब्लागरों की दुनिया तक खींच लाया । शुरुआत में इकलौती बेटी के लालन पालन से जुडी व्यस्ताओं और घर के काम काज ने उतना समय नहीं दिया । 


पर अब तो दस साल की बिटिया भी ब्लागर बनने की ज़िद करने लगी है । इसलिए मेरा कंप्यूटर पर हाथ चलाना अपरिहार्य हो जाता है । वैसे मैं मध्यप्रदेश में संस्कारधानी के नाम से विख्यात जबलपुर में पली बढ़ी हूँ । और फिलहाल देश की राजधानी दिल्ली की जीवन शैली से कदम मिलाने का प्रयास कर रही हूँ । अर्थशास्त्र की छात्रा होने के बाद भी रूपए पैसे से रत्ती भर भी मोह नहीं । पर संगीत के हिसाब किताब में सिद्धहस्त हूँ । कुछ समय तक अध्यापन में भी मन लगाया । पर मज़ा नहीं आया । अब नए और रोचक विषयों को जानने और सभी को उनसे रूबरू कराने में जुटी हूँ । इनका ब्लाग - सुरंजनी

रविवार, 7 अगस्त 2011

कैसे यकीं आये वो मुझसे प्‍यार करता है - निर्मला कपिला

निर्मला जी का हमारे बीच होना मुझे हमेशा ही एक सुखद अनुभूति सी देता है । मेरे परिचित ब्लागर्स बन्धु और नेट यूजर्स भली भाँति जानते हैं । बुजुर्गों के अधिकार और समाज परिवार में उनका सम्मानीय स्थान.. इस बात का मैं प्रबल पक्षधर रहा हूँ । और ये महज कोरी सहानुभूति नहीं है । या हमारी भारतीय संस्कृति परम्परा आदि की लीक पीटने भर के लिये बात नहीं है । बल्कि ये मेरे अपने जीवन अनुभव में बुजुर्गों की संगति से स्वतः उपजा ह्रदयी उदगार है । स्वतः खिला भावना पुष्प है ।
इसकी वजह भी बङी महत्वपूर्ण थी । पढाकू प्रवृति होने के कारण इतिहास की किताबें । शोध पुस्तकें आदि में सिर खपाने के दौरान इत्तफ़ाकन जब बुजुर्गों से किसी विषय पर बात की । तो उनके पास सरल और सहज  सुलभ रूप में जानकारियों का खजाना ही मौजूद था । जो बात हम एक मोटी किताब से घण्टों अध्ययन के बाद जानते । उससे बहुत ज्यादा मुझे उनसे आसानी से प्राप्त हुआ । संक्षिप्त में कहूँ । तो सिर्फ़ हमारी प्रेम भावना के भूखे बुजुर्ग चलता फ़िरता समय का इतिहास हैं । बस हम आधुनिकता में उनकी उपेक्षा करते हुये उनकी सही कीमत नहीं जानते । सच मानिये । मेरा यही दृष्टिकोण है ।
ब्लाग जगत की सशक्त हस्ताक्षर निर्मला जी का ब्लाग मैंने आज अचानक ही नहीं खोजा । बल्कि मैं शुरूआत से ही उन्हें जानता हूँ । बेबाक..खुली..स्पष्ट बात कहने और पारदर्शी टिप्पणी करने वालीं निर्मला कपिला जी लिखतीं भी उसी बेबाकी से हैं ।
निर्मला जी अपने बारे में कहती हैं -


अपने लिये कहने को कुछ नहीं मेरे पास । पंजाब मे एक छोटे से खूबसूरत शहर नंगल मे होश सम्भाला । तब से यहीं हूँ । B.B.M.B अस्पताल से चीफ फार्मासिस्ट रिटायर हूँ । अब लेखन को समर्पित हूँ । मेरी 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । 1 - सुबह से पहले ( कविता संग्रह ) 2 - वीरबहुटी ( कहानी संग्रह ) 3 - प्रेमसेतु ( कहानी संग्रह ) आजकल अपनी रूह के शहर इस ब्लाग  पर अधिक रहती हूँ । आई थी । एक छोटी सी मुस्कान की तलाश में । मगर मिल गया । खुशियों का समंदर । कविता । कहानी । गज़ल । मेरी मनपसंद विधायें हैं । पुस्तकें पढना और ब्लाग पर लिखना मेरा शौक है । इनका ब्लाग - वीर बहूटी वीरांचल गाथा ।


*** इस ब्लाग पर निर्मला जी को लाना ( उनका परिचय कराने की बात कहने का तो कोई आधार ही नहीं बनता । उनसे सभी पूर्व परिचित ही हैं ) मेरी दिली इच्छा थी । इस हेतु मैं उनके ब्लाग से एक गजल भी साथ में चाहता था । पर ब्लाग लाक्ड था । अतः मैंने उन्हें कमेंट में इस बात का आग्रह किया । तब निर्मला जी ने मुझे मेल द्वारा गजल भेज दी ।
- राजीव जी नमस्कार । बहुत दिन से नेट से दूर थी । आपके कमेंट के लिये धन्यवाद । और मेरी गज़ल की समीक्षा के लिये गज़ल मंगवाने के लिये भी धन्यवाद । गज़ल भेज तो रही हूँ । लेकिन अभी गज़ल में महारत हासिल नहीं है । बस सीख रही हूँ । जितने शेर गर्मियों की दुपहरी पर लिखे । सभी भेज रही हूँ । जबकि 7 य्क़्क़ 9 शेर स्4ए अधिक नहीं होने चाहिये । बाकी आप देख लें । धन्यवाद ।
*** मैं भला उनकी गजल की समीक्षा क्या करूँगा । आप लोग खुद ही देख लो । मेरी बात सच है । या नहीं ।
न वो इकरार करता है न तो इन्कार करता है । मुझे कैसे यकीं आये, वो मुझसे प्‍यार करता है ।
फ़लक पे झूम जाती हैं घटाएं भी मुहब्‍बत से । मुहब्‍बत का वो मुझसे जब कभी इज़हार करता है ।
मिठास उसकी ज़ुबां में अब तलक देखी नहीं मैंने । वो जब मिलता है तो शब्‍दों की बस बौछार करता है ।


खलायें रोज देती हैं सदा बीते हुये कल को । यही माज़ी तो बस दिल पर हमेशा वार करता है ।
उड़ाये ख्‍़वाब सारे बाप के बेटे ने एबों में ।  नहीं जो बाप कर पाया वो बरखुरदार करता है ।
नहीं क्‍यों सीखता कुछ तजरुबों से अपने ये इन्‍सां । जो पहले कर चुका वो गल्तियां हर बार करता है ।
उसी परमात्‍मा ने तो रचा ये खेल सारा है । वही धरती की हर इक शै: का खुद सिंगार करता है ।
अभी तक जान पाया कौन है उसकी रज़ा का सच । नहीं इन्‍सान करता कुछ भी, सब करतार करता है ।
कहां है खो गई संवेदना, क्‍यों बढ़ गया लालच । मिलावट के बिना कोई नही व्यापार करता है ।
बडे बूढ़े अकेले हो गये हैं किस क़दर निर्मल । नहीं परवाह कुछ भी उनका ही परिवार करता है ।


इनका ब्लाग - वीर बहूटी । वीरांचल गाथा

या खुदा दो पल की मोहलत और दे । उदास मेरी कबर से जा रहा है कोई - किरन रावत

शिखा जी अक्सर ही कहती हैं - राजीव जी ! हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में देख लेना । लोग मेरी भलमनसाहत की तारीफ़ ही करते मिलेंगे । यह एकदम सही भी है । मैंने इनके खुद के कालोनी में जाकर देखा भी । लोग कितनीsss ? तारीफ़ करते हैं । इससे पहले इसी ब्लाग पर बता भी चुका हूँ ।
कल एक ब्लाग देखा । किरन रावत जी का । उन्होंने ब्लाग का नाम ही - बुरा जो देखन मैं चली । बुरा न मिलया कोय । जब दिल खोजा ( ब्लाग जगत में जब देखा ) आपना । .......कौशिक ? से ... न कोय ।
अब कोई इंसान इससे ज्यादा डायरेक्टली तो नहीं कह सकता ना ।
बच्चे भी शिखा जी से इतना प्यार करते हैं - ओ मम्मी रे ! छिका बुआ आ गयी । कहकर गोद में छुप जाते हैं । जीव मात्र ( पेट एनीमल एण्ड नान पेट एनीमल्स ) तो शिखा जी को इतना लव करते हैं । जैसे लंगूर को देखकर जो रियेक्ट बन्दर मामा जी करते हैं । बस आगे आप समझदार ही हो ।
..कमाल है । मेरे इतना समझाने पर भी आप शिखा जी को सही से न समझ पाओ । तो फ़िर...सबूत के लिये शालिनी जी से पूछ लेना । शालिनी जी ! यही कहेंगी - आफ़कोर्स शिखा से सभी प्रेम करते हैं ?
आईये अब शिखा पुराण को छोङकर किरन जी की बात करते हैं ।
ये है । किरन रावत जी का परिचय -


जींद । हरियाणा । भारत की रहने वाली सुश्री किरन रावत जी की हर बात ही निराली है । उनके बहुत कम शब्दों में जमाने भर का गम और सागर की सी गहराई छुपी हुयी है । मगर इसके बाद भी उसे हताशा या निराशा हरगिज नहीं कह सकते । देखिये - जो न समझ सके  उसके लिए पहेली हूँ । जो समझ ले  उसके लिए खुली किताब हूँ बेवफ़ाई की मजबूती भी - ये ज़रूरी नहीं हर कोई पास हो । क्योंकि जिंदगी में यादों के भी सहारे होते है । इसी तरह का अपने लिये भी उनका विचार है - अच्छी बुरी जैसी भी हूँ । अपने लिये ही हूँ । मैं खुद को नहीं देखती । औरों की नजर से । तारुफ़ के लिये इतना ही । वो रिश्ता छोङ देते हैं । जो रिश्ता आम होता है । आगे वे अपने बारे में और भी कहती हैं - I m very simple girl, strongly believe in relationships and friendships I also think that what goes around comes 


around. Life is short so don't hurt others and don't have hate in your life because we don't know what will happen tomorrow. इनका ब्लाग - बुरा जो देखन मैं चली ।  α яαу σƒ нσρє


और ये हैं । उनकी कुछ बेहतरीन रचनायें -


खुली किताब हूँ
मै अजनबी दुनिया में तनहा एक ख्वाब हूँ  । सवालों से खफा एक छोटा सा जवाब हूँ  ।
जो न समझ सके उसके लिए पहेली हूँ । जो समझ ले उसके लिए खुली किताब हूँ ।
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं । इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं ।
हूँ । न दिया हूँ । न कोई तारा हूँ । रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं ।
नींद से मेरा तालुक़ ही नहीं बरसों से । ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं ।
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए । फिसलते क्यों हैं ।
**********
मौत के बाद याद आ रहा है कोई । मिट्ठी मेरी कबर से उठा रहा है कोई ।


या खुदा दो पल की मोहलत और दे दे । उदास मेरी कबर से जा रहा है कोई ।
याद करते है तुम्हे तनहाई में । दिल डूबा है गमो की गहराई में ।
हमें मत ढूँढना दुनिया की भीड़ में । हम मिलेंगे में तुम्हें तुम्हारी परछाई में ।
दिल को हमसे चुराया आपने । दूर होकर भी अपना बनाया आपने ।
कभी भूल नहीं पायेंगे हम आपको । क्योंकि याद रखना भी तो सिखाया आपने ।
हर सागर के दो किनारे होते है । कुछ लोग जान से भी प्यारे होते है ।
ये ज़रूरी नहीं हर कोई पास हो । क्योंकि जिंदगी में यादों के भी सहारे होते है ।

अगर आप इसे कविता ना भी समझो......!!


अगर आप इसे कविता ना भी समझो......!!
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
बे-ईमानों से बेतरह घिरे हुए हैं हम 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
इस भीड़ में कहीं-ना-कहीं हम खुद भी शामिल हैं !
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
कि बेलगाम हो चुका यह हरामखोर भ्रष्टाचार 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
हम समझ नहीं पा रहे हैं खुद की ताकत 
और इस गहन समय की गहरी गंभीरता !
हम स्वयम ही दिए जा रहे हैं तरह की घूस 
और स्वयं ही पीड़ा का स्वांग भी भर रहे हैं 
हाँ यह स्वांग ही तो है कि 
हममे से ही चुन-चुन कर जा रहे हैं वहां लोग 
जो तत्काल ही बे-ईमान हो जा रहे हैं 
हमें अब यह सोचना ही होगा कि 
कहीं-ना-कहीं हमारे खून में ही कोई खराबी है 
कि पलक झपकते ही नहीं हो जाया करता हरामी 
खाता भी जाए और थाली में छेड़ भी करता जाए !
हमें अब सोचना ही होगा कि हमारी रगों में 
शायद खून नहीं कुछ और ही बह रहा है !
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
स्विस बैंकों में लूटे पड़े हैं हमारे इतने लाख करोड़ 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
यह बात एकदम से साबित होते हुए भी कुछ होने को नहीं है !
भ्रष्टाचार की बाबत हमारी चिंताएं 
महज कोरी बातें हैं....अगंभीर गप्पें !
और ये गप्पें भी ऐसी हैं कि कभी ख़त्म होने को नहीं आती 
टी.वी.के सामने कुरकुरे खाते हुए 
किसी पान दूकान या चौराहे पर बतियाते हुए 
किसी काफी हाऊस में चाय की चुस्कियों के साथ 
हवा में हाथ घुमाते और हरामियों को लतियाते !
यह सब अब इतना ऊबाऊ हो चुका कि जैसे 
हमारा होना ही फिजूल हो चुका हो ओ !
हमारे चेहरे पर हमारी आँख हैं अगरचे हम
तो भ्रष्टाचार हमारी खुद की नाक से छु रहा है 
हमारी दोनों खुली हुई आँखों के ऐन नीचे 
और बे-इमानी हमारी जीभ से टपक रही है 
अनवरत लार की तरह 
हम जो कहे जा रहे हैं लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ 
वो बिना किसी अर्थ के महज एक बक-बक है 
क्योंकि हमारा खुद का चरित्र भी कुछ 
इसी तरह के गुणों से ही लकदक है 
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
इस सबके खिलाफ हम कर नहीं पा रहे हैं 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
ऐसा करने वालों को हम अब भी 
मंचों पर आसीन करवा रहें हैं 
उन्हें अब भी फूल-मालाएं पहना रहे हैं 
अपने स्वार्थ से वशीभूत होकर कहीं-कहीं तो 
हम उनकी चालीसा भी बना-बना कर गा रहे हैं !!
अब तो यह लगने लगा है कि हमारी तकलीफ 
दरअसल हमारा एक प्रोपगंडा है
किसी घोंघे की तरह अपनी खोल में दुबक जाने की 
जान-बूझ कर की गयी एक बेशर्म कवायद 
कि हमारी खाल भी बची रहे
और एक आन्दोलन का वहम भी बना रहे !!
तकलीफ इस बात की भी नहीं है कि
हमारे भीतर नहीं बचा हुआ कोई जूनून 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
हम आवाज़ दे रहे हैं सबको कि आओ बाहर निकलो 
और खुद किसी ना तरह की सुख-सेज पर रति-रत हुए जा रहे हैं !!
मुझे गहरी उम्मीद है कि हमसे कुछ नहीं है होने-जाने को 
हम तो बस अपने-अपने दडबों में बंद बस चिल्ला रहे हैं 
जैसे किसी ऐ.आर रहमान का कोई कोरस-गान गा रहे हैं ! 
तकलीफ इस बात की भी नहीं है कि
इतना कुछ होता जा रहा है हमारे होते हुए हमारे खिलाफ 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
हम तो ठीक तरीके से इसे देख भी नहीं पा रहे हैं 
जब ताल ठोक कर आ जाना चाहिए हमें ऐन सड़क पर 
और लगानी चाहिए अपने हथियारों पर धार 
और हो जाना चाहिए खुद के मरने को तैयार 
हम किसी गोष्ठी में बैठकर 
किसी फेस-बुक या किसी ब्लॉग में घुसकर 
हल्ला-बोल....हल्ला-बोल चिल्ला रहे हैं !!!!