निर्मला जी का हमारे बीच होना मुझे हमेशा ही एक सुखद अनुभूति सी देता है । मेरे परिचित ब्लागर्स बन्धु और नेट यूजर्स भली भाँति जानते हैं । बुजुर्गों के अधिकार और समाज परिवार में उनका सम्मानीय स्थान.. इस बात का मैं प्रबल पक्षधर रहा हूँ । और ये महज कोरी सहानुभूति नहीं है । या हमारी भारतीय संस्कृति परम्परा आदि की लीक पीटने भर के लिये बात नहीं है । बल्कि ये मेरे अपने जीवन अनुभव में बुजुर्गों की संगति से स्वतः उपजा ह्रदयी उदगार है । स्वतः खिला भावना पुष्प है ।
इसकी वजह भी बङी महत्वपूर्ण थी । पढाकू प्रवृति होने के कारण इतिहास की किताबें । शोध पुस्तकें आदि में सिर खपाने के दौरान इत्तफ़ाकन जब बुजुर्गों से किसी विषय पर बात की । तो उनके पास सरल और सहज सुलभ रूप में जानकारियों का खजाना ही मौजूद था । जो बात हम एक मोटी किताब से घण्टों अध्ययन के बाद जानते । उससे बहुत ज्यादा मुझे उनसे आसानी से प्राप्त हुआ । संक्षिप्त में कहूँ । तो सिर्फ़ हमारी प्रेम भावना के भूखे बुजुर्ग चलता फ़िरता समय का इतिहास हैं । बस हम आधुनिकता में उनकी उपेक्षा करते हुये उनकी सही कीमत नहीं जानते । सच मानिये । मेरा यही दृष्टिकोण है ।
ब्लाग जगत की सशक्त हस्ताक्षर निर्मला जी का ब्लाग मैंने आज अचानक ही नहीं खोजा । बल्कि मैं शुरूआत से ही उन्हें जानता हूँ । बेबाक..खुली..स्पष्ट बात कहने और पारदर्शी टिप्पणी करने वालीं निर्मला कपिला जी लिखतीं भी उसी बेबाकी से हैं ।
निर्मला जी अपने बारे में कहती हैं -
अपने लिये कहने को कुछ नहीं मेरे पास । पंजाब मे एक छोटे से खूबसूरत शहर नंगल मे होश सम्भाला । तब से यहीं हूँ । B.B.M.B अस्पताल से चीफ फार्मासिस्ट रिटायर हूँ । अब लेखन को समर्पित हूँ । मेरी 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । 1 - सुबह से पहले ( कविता संग्रह ) 2 - वीरबहुटी ( कहानी संग्रह ) 3 - प्रेमसेतु ( कहानी संग्रह ) आजकल अपनी रूह के शहर इस ब्लाग पर अधिक रहती हूँ । आई थी । एक छोटी सी मुस्कान की तलाश में । मगर मिल गया । खुशियों का समंदर । कविता । कहानी । गज़ल । मेरी मनपसंद विधायें हैं । पुस्तकें पढना और ब्लाग पर लिखना मेरा शौक है । इनका ब्लाग - वीर बहूटी । वीरांचल गाथा ।
*** इस ब्लाग पर निर्मला जी को लाना ( उनका परिचय कराने की बात कहने का तो कोई आधार ही नहीं बनता । उनसे सभी पूर्व परिचित ही हैं ) मेरी दिली इच्छा थी । इस हेतु मैं उनके ब्लाग से एक गजल भी साथ में चाहता था । पर ब्लाग लाक्ड था । अतः मैंने उन्हें कमेंट में इस बात का आग्रह किया । तब निर्मला जी ने मुझे मेल द्वारा गजल भेज दी ।
- राजीव जी नमस्कार । बहुत दिन से नेट से दूर थी । आपके कमेंट के लिये धन्यवाद । और मेरी गज़ल की समीक्षा के लिये गज़ल मंगवाने के लिये भी धन्यवाद । गज़ल भेज तो रही हूँ । लेकिन अभी गज़ल में महारत हासिल नहीं है । बस सीख रही हूँ । जितने शेर गर्मियों की दुपहरी पर लिखे । सभी भेज रही हूँ । जबकि 7 य्क़्क़ 9 शेर स्4ए अधिक नहीं होने चाहिये । बाकी आप देख लें । धन्यवाद ।
*** मैं भला उनकी गजल की समीक्षा क्या करूँगा । आप लोग खुद ही देख लो । मेरी बात सच है । या नहीं ।
न वो इकरार करता है न तो इन्कार करता है । मुझे कैसे यकीं आये, वो मुझसे प्यार करता है ।
फ़लक पे झूम जाती हैं घटाएं भी मुहब्बत से । मुहब्बत का वो मुझसे जब कभी इज़हार करता है ।
मिठास उसकी ज़ुबां में अब तलक देखी नहीं मैंने । वो जब मिलता है तो शब्दों की बस बौछार करता है ।
खलायें रोज देती हैं सदा बीते हुये कल को । यही माज़ी तो बस दिल पर हमेशा वार करता है ।
उड़ाये ख़्वाब सारे बाप के बेटे ने एबों में । नहीं जो बाप कर पाया वो बरखुरदार करता है ।
नहीं क्यों सीखता कुछ तजरुबों से अपने ये इन्सां । जो पहले कर चुका वो गल्तियां हर बार करता है ।
उसी परमात्मा ने तो रचा ये खेल सारा है । वही धरती की हर इक शै: का खुद सिंगार करता है ।
अभी तक जान पाया कौन है उसकी रज़ा का सच । नहीं इन्सान करता कुछ भी, सब करतार करता है ।
कहां है खो गई संवेदना, क्यों बढ़ गया लालच । मिलावट के बिना कोई नही व्यापार करता है ।
बडे बूढ़े अकेले हो गये हैं किस क़दर निर्मल । नहीं परवाह कुछ भी उनका ही परिवार करता है ।
इनका ब्लाग - वीर बहूटी । वीरांचल गाथा
इसकी वजह भी बङी महत्वपूर्ण थी । पढाकू प्रवृति होने के कारण इतिहास की किताबें । शोध पुस्तकें आदि में सिर खपाने के दौरान इत्तफ़ाकन जब बुजुर्गों से किसी विषय पर बात की । तो उनके पास सरल और सहज सुलभ रूप में जानकारियों का खजाना ही मौजूद था । जो बात हम एक मोटी किताब से घण्टों अध्ययन के बाद जानते । उससे बहुत ज्यादा मुझे उनसे आसानी से प्राप्त हुआ । संक्षिप्त में कहूँ । तो सिर्फ़ हमारी प्रेम भावना के भूखे बुजुर्ग चलता फ़िरता समय का इतिहास हैं । बस हम आधुनिकता में उनकी उपेक्षा करते हुये उनकी सही कीमत नहीं जानते । सच मानिये । मेरा यही दृष्टिकोण है ।
ब्लाग जगत की सशक्त हस्ताक्षर निर्मला जी का ब्लाग मैंने आज अचानक ही नहीं खोजा । बल्कि मैं शुरूआत से ही उन्हें जानता हूँ । बेबाक..खुली..स्पष्ट बात कहने और पारदर्शी टिप्पणी करने वालीं निर्मला कपिला जी लिखतीं भी उसी बेबाकी से हैं ।
निर्मला जी अपने बारे में कहती हैं -
अपने लिये कहने को कुछ नहीं मेरे पास । पंजाब मे एक छोटे से खूबसूरत शहर नंगल मे होश सम्भाला । तब से यहीं हूँ । B.B.M.B अस्पताल से चीफ फार्मासिस्ट रिटायर हूँ । अब लेखन को समर्पित हूँ । मेरी 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । 1 - सुबह से पहले ( कविता संग्रह ) 2 - वीरबहुटी ( कहानी संग्रह ) 3 - प्रेमसेतु ( कहानी संग्रह ) आजकल अपनी रूह के शहर इस ब्लाग पर अधिक रहती हूँ । आई थी । एक छोटी सी मुस्कान की तलाश में । मगर मिल गया । खुशियों का समंदर । कविता । कहानी । गज़ल । मेरी मनपसंद विधायें हैं । पुस्तकें पढना और ब्लाग पर लिखना मेरा शौक है । इनका ब्लाग - वीर बहूटी । वीरांचल गाथा ।
*** इस ब्लाग पर निर्मला जी को लाना ( उनका परिचय कराने की बात कहने का तो कोई आधार ही नहीं बनता । उनसे सभी पूर्व परिचित ही हैं ) मेरी दिली इच्छा थी । इस हेतु मैं उनके ब्लाग से एक गजल भी साथ में चाहता था । पर ब्लाग लाक्ड था । अतः मैंने उन्हें कमेंट में इस बात का आग्रह किया । तब निर्मला जी ने मुझे मेल द्वारा गजल भेज दी ।
- राजीव जी नमस्कार । बहुत दिन से नेट से दूर थी । आपके कमेंट के लिये धन्यवाद । और मेरी गज़ल की समीक्षा के लिये गज़ल मंगवाने के लिये भी धन्यवाद । गज़ल भेज तो रही हूँ । लेकिन अभी गज़ल में महारत हासिल नहीं है । बस सीख रही हूँ । जितने शेर गर्मियों की दुपहरी पर लिखे । सभी भेज रही हूँ । जबकि 7 य्क़्क़ 9 शेर स्4ए अधिक नहीं होने चाहिये । बाकी आप देख लें । धन्यवाद ।
*** मैं भला उनकी गजल की समीक्षा क्या करूँगा । आप लोग खुद ही देख लो । मेरी बात सच है । या नहीं ।
न वो इकरार करता है न तो इन्कार करता है । मुझे कैसे यकीं आये, वो मुझसे प्यार करता है ।
फ़लक पे झूम जाती हैं घटाएं भी मुहब्बत से । मुहब्बत का वो मुझसे जब कभी इज़हार करता है ।
मिठास उसकी ज़ुबां में अब तलक देखी नहीं मैंने । वो जब मिलता है तो शब्दों की बस बौछार करता है ।
खलायें रोज देती हैं सदा बीते हुये कल को । यही माज़ी तो बस दिल पर हमेशा वार करता है ।
उड़ाये ख़्वाब सारे बाप के बेटे ने एबों में । नहीं जो बाप कर पाया वो बरखुरदार करता है ।
नहीं क्यों सीखता कुछ तजरुबों से अपने ये इन्सां । जो पहले कर चुका वो गल्तियां हर बार करता है ।
उसी परमात्मा ने तो रचा ये खेल सारा है । वही धरती की हर इक शै: का खुद सिंगार करता है ।
अभी तक जान पाया कौन है उसकी रज़ा का सच । नहीं इन्सान करता कुछ भी, सब करतार करता है ।
कहां है खो गई संवेदना, क्यों बढ़ गया लालच । मिलावट के बिना कोई नही व्यापार करता है ।
बडे बूढ़े अकेले हो गये हैं किस क़दर निर्मल । नहीं परवाह कुछ भी उनका ही परिवार करता है ।
इनका ब्लाग - वीर बहूटी । वीरांचल गाथा
8 टिप्पणियां:
शिखा जी कृपया निर्मला जी को सूचित कर देना
हैप्पी फ़्रेंडशिप डे।
Nice post .
हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
बेहतर है कि ब्लॉगर्स मीट ब्लॉग पर आयोजित हुआ करे ताकि सारी दुनिया के कोने कोने से ब्लॉगर्स एक मंच पर जमा हो सकें और विश्व को सही दिशा देने के लिए अपने विचार आपस में साझा कर सकें। इसमें बिना किसी भेदभाव के हरेक आय और हरेक आयु के ब्लॉगर्स सम्मानपूर्वक शामिल हो सकते हैं। ब्लॉग पर आयोजित होने वाली मीट में वे ब्लॉगर्स भी आ सकती हैं / आ सकते हैं जो कि किसी वजह से अजनबियों से रू ब रू नहीं होना चाहते।
निर्मला जी की गजलों के हम तो पुराने रसिया हैं।
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ब्लॉगसमीक्षा की 27वीं कड़ी!
क्या भारतीयों तक पहुँचेगी यह नई चेतना ?
very nice post .i shall inform Nirmala ji .
राजीव जी . आपकी हर प्रस्तुति जहाँ कहीं भी हो शानदार होती है और सबसे शानदार होते हैं वे फोटो जो आप हर पोस्ट पर लगाते हैं .निर्मला जी की ये शानदार प्रस्तुति यहाँ करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं और हमारा आभार स्वीकार करें .
बहुत उम्दा गजल लिखतीं हैं निर्मलाजी .उनसे परिचित तो थी मैं लेकिन आपने विस्तार से सबकुछ बताया इसके लिए धन्यवाद
शानदार प्रस्तुती....
निर्मला जी को लगातार पढ़ते आये हैं...यहाँ देखकर अच्छा लगा.
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