देश का स्वाधीनता दिवस हो और देश वासियों के दिलों में ख़ुशी न हो ये वास्तव में दुखद है किन्तु देश की वर्तमान स्थितियां आज हर भारतीय को सोचने पर विवश कर रही हैं की क्या यही वह आज़ादी है जिसे पाने को चंद्रशेखर आज़ाद,भगत सिंह,मंगल पाण्डेय ,रामप्रसाद बिस्मिल सरीखे वीरों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए .कितनी ही माओं की गोद सूनी हो गयी कितनी ही बहनों की राखी घर में रखी रह गयी कितने ही पिताओं की आँखें अपने पुत्र की राह देखते देखते पथरा गयी पर आज का सच यही है और इसके लिए अन्ना हजारे , किरण बेदी ,अरविन्द केजरीवाल जैसे सेकड़ों भारतीय एक मन हो उठ खड़े हुए हैं और स्थितियों में फेर बदल को कमर कस लिए हैं किन्तु ये क्या एक हमारे ''राजीव कुलश्रेष्ठ जी '' हैं जो इस सबसे बेखबर अपनी कटोरी देवी जी के साथ बहुत प्रसन्नता के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाने में लगे हैं देखिये हम ऐसे ही नहीं कह रहे हैं-
हमने जब राजीव जी और कटोरी देवी जी को इतनी प्रसन्नता से स्वतंत्रता दिवस की खुशियाँ मनाते देखा तो वे कहने लगे कि हम ज्यादा सोच सोच कर परेशान होने वालों में नहीं हैं और हमें तो आश्चर्य है कि भारत की जनता जब देखो कुछ न कुछ सोच कर परेशान होती रहती है .जब खुशियाँ मनाने का समय है तब तो दुखी हो जाओ और बाद में कहते फिरो कि हमें भगवान ख़ुशी नहीं देता हम तो ऐसे नहीं हैं और आप को ये जानकर आशचर्य होगा कि वे तो पीछे ही पड़ गए हमारे हाथों में कैमरा देख कर और कहने लगे कि जल्दी से आप हमारी और फोटो लीजिये और अगर हो सके तो कल के अख़बार में सबसे ऊपर लगा दीजियेगा ताकि और लोग भी हमसे प्रेरणा लें .हमने कहा कि राजीव जी आप तो भूल गए हमें हम कोई अख़बार वाले थोड़े ही हैं जो देश वासियों के उत्साही और निराश चेहरों के फोटो खींचते फिर रहे हों हम तो अपना कैमरा ठीक करने निकले थे और आप दिखाई दे गए तो आपकी ख़ुशी का राज़ जानने आ गए.पर हद ही हो गयी वे तो हमें फोटो न खींचने पर श्राप देने पर उतारू हो गए और हमें फिर मन न होते हुए भी उनकी एक फोटो लेनी ही पड़ी
बाद में ये कहते हुए ही उन्होंने हमारा पीछा छोड़ा कि हम ये फोटो उनके पास ज़रूर भेज देंगे.एक और राजीव जी और एक और हमारे प्रदीप जी दोनों में कितना अंतर है एक खुशियों को मनाने में लगे हैं तो एक अंतर्द्वंद में उलझे हैं प्रदीप जी की कविता देश के प्रति उनकी चिंता को दिखाती है और दिखाती है वर्तमान को जो वास्तव में हमें खुशियों से मुहं मोड़ने को प्रेरित करता है .आप भी जाइये और देखिये उनके ब्लॉग मेरी कविता पर उनके अंतर्द्वंद को url है-
मेरा परिचय:-
बताइयेगा आकर कि कहाँ तक आप उनके अंतर्द्वंद से सहमत हैं और कहाँ तक उनकी मदद कर पाए हैं इस अंतर्द्वंद से उबरने में- मैं तो प्रदीप जी से डॉ.राही निज़ामी जी के शब्दों में यही कहूँगी-
''वतन की अजमतों के जो हैं दुश्मन,
इरादे उनके तू बेजान कर दे
''वतन की अजमतों के जो हैं दुश्मन,
इरादे उनके तू बेजान कर दे
.तिरंगा है वतन की शान या रब ,
इसे कुछ और भी जी शान कर दे.''
शालिनी कौशिक
7 टिप्पणियां:
धन्यवाद शालिनी जी ! मेरी दो सगी और दस चचेरी
ताऊ बहनें हैं । जिनमें एक खुदा को प्यारी हो गयीं ।
लेकिन एक मौसी की लङकी मिलाकर अभी भी पूरी
बारह की बारह हैं । और सभी राखियाँ बाँधती हैं ।
इस तरह मेरा तो बारह महीने रक्षाबंधन ही रहता है ।
मगर प्यार का बंधन इससे अलग ही है ।
राजीव जी आप ने जो बताया जानकर बहुत अफ़सोस हुआ किन्तु ये तो प्रभु इच्छा है आप की एक बहन का दुःख हमेशा रहेगा लेकिन प्रभु ने आपको दो बहने और दी हैं और ये जानकर इस दुःख को सहन करें
very nice post shalini ji .
प्रदीप जी से मिलवाने का आभार।
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क्या आपके ब्लॉग में वाइरस है?
बिल्ली बोली चूहा से: आओ बाँध दूँ राखी...
bhtrin andaaz e byan hai ..akhtar khan akela kota rajsthan
Dhanyawad Shalini ji mere blog ko jagah dene ke liye..
Waise aapka lekh kafi achchha raha.. Aabhar..
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाईयां
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