बरसों पहले जब दुनिया बाबा की दीवानी थी। तब भी हमने लोगों को बताया था कि योग के नाम पर बिज़नैस किया जा रहा है। पश्चिम में योग की मूल आत्मा वैराग्य को ग्रहण नहीं किया जा रहा है बल्कि वहां की औरतें अपने को आकर्षक बनाने के लिए बाबाओं से योग सीखती हैं और इसी मक़सद से वहां के पुरूष भी योग सीख रहे हैं। तनाव से मुक्ति के लिए भी वे योग को एक एक्सरसाइज़ के तौर पर ही लेते हैं। लेकिन हमारे कहने पर तब उचित ध्यान ही नहीं दिया गया बल्कि हमें कह दिया गया कि आप तो हैं ही देश के ग़द्दार ।
जिन्हें राष्ट्रवादियों का अग्रदूत माना जा रहा था, उनका कच्चा चिठ्ठा आज सबके सामने है तो समझा जा सकता है कि जो लोग इनके साथ थे या इनके पीछे थे, उनके कर्म कैसे होंगे ?
आज बाबा और उनका राज़दार बालकृष्ण दोनों ही चिंतातुर नज़र आते हैं। वे तनाव दूर करने के लिए ख़ुद योग का सहारा क्यों नहीं लेते ?
गद्दी पर क़ब्ज़े के लिए गुरू जी को ऊर्ध्वगमन करा देने वाले शिष्य कुछ भी कर सकते हैं। अपने ही जैसे राजनीतिज्ञों से अगर वह भी दूसरे बाबाओं की तरह सैटिंग कर लेते तो आज उनके आभामंडल पर यूं आंच न आती। जो अफ़सर कल तक पांव छूते थे वे आज गला पकड़ रहे हैं।
ये बाबा तो लोक व्यवहार की नीति तक से अन्जान निकले।
आदरणीय श्री महेंद्र श्रीवास्तव जी का लेख इन सभी बातों को बेहतरीन अंदाज़ में बयान करता है और यह तारीफ़ दिल से निकल रही है।
इस मंच को एक बेहतरीन लेख देने के लिए आपका शुक्रिया !
उनके लेख का लिंक नीचे दिया जा रहा है
अविनाश वाचस्पति जी का लेख भी इसी विषय पर एक करारा व्यंग्य है। उसका लिंक यह है
इतनी अच्छी पोस्ट्स जिस ब्लॉग पर हों तो क्या वह अच्छा न लगेगा भला ?
'ब्लॉगर्स मीट वीकली' के ज़रिये ब्लॉग पर मीत आयोजित करने वाला पहला ब्लॉग भी यही है .
2 टिप्पणियां:
एक शब्द शालीन नहीं लगा पोस्ट का इसलिए हटा रही हूँ .वैसे पोस्ट दिमाग खोलने वाली है और यह ब्लॉग भी .आभार
जिसकी बहन शालिनी हो उसका शब्द भला शालीन क्यों न होगा ?
आपको पसंद न हो तो यह आपके शब्द चयन का मामला है और आप फैसले के लिए स्वतंत्र हैं .
लेख पसंद आया , इसके लिए शुक्रिया.
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