सोमवार, 15 अगस्त 2011

आइये स्वतंत्रता दिवस मनाएं ''''अपनी आवाज़'' '' में

आइये स्वतंत्रता दिवस मनाएं ''आवाज़  अपनी '' में क्यों कुछ विचित्र लगा .आज जब कोई भारत में अपनी आवाज़ की बात करता है तो ऐसा विचित्र ही अनुभव होता है.ज़रा तब सोचिये क्या लगा होगा जब लाहौर   षड्यंत्र  कार्यवाही  में विशेष ट्रिब्यूनल  के समक्ष ५ मई १९३० को शहीदे आज़म भगत सिंह ने अपनी आवाज़ में कुछ यूँ कहा होगा-
''वतन की आबरू को पास देखे कौन करता है,
सुना है आज मकतब में हमारा इम्तहाँ होगा .
इलाही वह भी दिन होगा जब अपना आसमां देखेंगे,
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमां होगा.''
              और आज ऐसी ही कुछ आवाज़ नजर आ रही है श्री तरुण भारतीय जी के ब्लॉग ''अपनी आवाज़'' श्री तरुण भारतीय जी अपने बारे में लिखते हैं-

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आज स्वतंत्रता दिवस की ६४ वीं वर्षगांठ पर उनके उद्गार कुछ यूँ प्रगट हुए हैं और इनमे पूरी सच्चाई है मैंने तो यही महसूस किया है शायद आपको भी यही अनुभव हो देखिये उनका आलेख आप के लिए मैं यहीं ले आई हूँ-

14 August 2011

64 सालों कि गुलामी

 चारों तरफ स्वतंत्रता दिवस मनाने कि तैयारियां चल रही हैं,बहुत लंबे और लुभावने वादे देश के नेता कर रहे हैं |व बहुत जगह पैसे को पानी कि तरह इस दिवस के नाम पर बहाय जा रहा है | इससे पहले कि आप भी इस जश्न को मनाने के लिय व्यस्त हो जाए | जरा सोचे कि स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं या परतंत्रता दिवस | क्या आपने कभी ये सोचा कि क्या देश स्वतंत्र है ? स्वंतंत्रता का सीधा सा अर्थ होता है, स्व यानि खुद का और तंत्र यानि शासन | हमारे भारत देश में शासन तो है लेकिन जरा इस बात पर गहनता से विचार करना कि ये शासन हमारा है या पराया | अब बात साफ़ है कि आज इस देश में जो शासन प्रणाली चल रही है वो हमारी नहीं है , देश उसी सिद्धांत पर चल रहा है जैसे अंग्रेज चलाया करते थे बस परिवर्तन इतना ही हुआ कि पहले अंग्रेज शासन करते थे और अब उसी सिद्धांत पर इस देश के वो लोग राज करते हैं जो शरीर से भारतीय हैं लेकिन मानसिकता से अंग्रेजियत भरी पड़ी है | विषय बहुत लंबा है परन्तु मुख्य रूप से बहुत से ऐसे उदाहरण हमारे सामने है जिनको जानकार व समझकर पूरी प्रमाणिकता से कहा जा सकता है कि भारत में आजादी आई नहीं है |हाँ सही मायेने में हम आजाद हुए ही नहीं हैं |
पूरी दुनिया के आजादी के इतिहास कि मैं बात करूँ तो ये इतिहास रहा है कि दुनिया में जो भी देश गुलाम रहकर , आजाद हुआ है उसने आजाद होने के बाद सबसे पहले जो काम किया वो है उस देश ने अपनी शिक्षा व मातृभाषा को अपनाया है | क्योंकि शिक्षा व्यवस्था व भाषा किसी भी देश के विकास में रीढ़ कि हड्डी का कम करती हैं |सोचने समझने कि जो क्षमता मातृभाषा में विकसित होती है वो विदेशी या अन्य भाषा में उतनी नहीं हो पाती है | हमारे सामने अमरीका का उदाहरण सामने है, कि अमरीका ने जो ऊँचाई पाई है | उसके इतिहास का हम जब अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि २०० साल पहले तक उसका इतना ज्यादा कोई अस्तित्व नहीं था |परन्तु 1776  के बाद अमरीका ने जो ऊंचाई पाई है उसका प्रमुख कारण यही रहा है कि उसने आजाद होते ही अपने देश कि भाषा व शिक्षा व्यवस्था को अपनाया | इसी तरह चीन का उदाहरण हमारे सामने है |1949 में चीन में जो सांस्कृतिक क्रांति हुई जिसका नेता माओ था माओ ने जब चीन को बदला तो सबसे पहले उसने देश कि भाषा व शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया | इसी तरह जापान, क्यूबा ,स्पेन ,डेनमार्क व कई अन्य देशो का उदाहरण हमारे सामने हैं |
भारत के संदर्भ में देखे तो यहाँ बिलकुल उल्टा चित्र नजर आता है | 1840 में अंग्रेज अफसर मैकाले ने जो शिक्षा व्यवस्था इस देश में भारतीय संस्कृति व सभ्यता को नष्ट करने के लिय व हम सब को मानसिक गुलाम बनाने के लिय बनाई थी वो आज भी इस देश में चलती है | उच्च शिक्षा का जो पाठ्यक्रम अंग्रेजो ने इस में लागू किया था वो लगभग 140 वर्षों से चल रहा है |
और अफ़सोस और दुःख कि बात तो यह है कि मैकाले ने हमारे इतिहास में जो विकृतियाँ डाली थी वो आज भी इस देश कि भावी पीढ़ी को पढाया जाता है |और इससे भी दुःख कि बात यह कि अंग्रेजो इस देश में जो परीक्षा प्रणाली इस देश में लागू करके गए थे वो उनके देश में नहीं चलती है | इसका मतलब सीधा सा यही है कि अगर वो अच्छी ही होती तो वो खुद भी अपनाते |
एक दो और उदाहरणों से बात स्पष्ट होती है कि भारत देश को लूटने और नागरिको पर अत्याचार कने के उदेश्य से अंग्रेज जो कानून बनाकर इस देश में गए थे वही कानून इस देश में चलते है और उनका दुरूपयोग होता | जिसका परिणाम यह कि हमारे देश कि न्यायपालिका सही न्याय नहीं कर पाती है |मात्र फैसला देने में ही वर्षों लग जाते हैं |1857 कि क्रांति होने के बाद जब अंग्रेजो को दर सताने लगा था कि भारतीय नागरिको को यदि काबू में नहीं किया गया तो वे हमारे शासन को जड़े जल्द ही उखाड़ फैकेंगे | भारतीयों कि आवाज को दबाने के लिय अंग्रेजो ने पुलिस बनाकर एक कानून बनया था जिसका नाम था इंडियन पुलिस एक्ट | इस कानून में साफ़ साफ़ लिखा था कि कोई भी अंग्रेज अधिकारी भारतीय नागरिको पर लाठी चार्ज कर सकता है और भारतीयों को यह अधिकार नहीं होगा कि वो इस इस एक्शन ले सकें | और आज 1947 में अंगेजो के जाने के बाद भी भारत देश में यह कानून चलता है और हालात यह हैं कि जब भी किसान , मजदुर , कारीगर या अन्य भारतीय सरकार से शांति पूर्वक अपने हक कि बात को कहने के लिय कोई आंदोलन या जुलुस करते हैं तो आज भी सरकारें इस कानून कि मदद से हमारे देश में हमारे ही नागरिको पर लाठियां बरसवाती  हैं | क्या हक माँगना गुनाह है ? आब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि असली में आजादी आई है या आज भी भारत परतंत्र है अंग्रेजियत शासन व्यवस्था का |
अंग्रेजो ने भारतियों को लूटने के मकसद से जो टैक्स प्रणाली भारत में चलाई थी वाही आज इस देश में चलती है |इनकम टैक्स , सेल टैक्स , टोलटैक्स, रोड टैक्स इस तरह से लगभग २३ प्रकार के टैक्स इस देश में लगाये थे उनके हालत यह हैं कि आज भारत में 64 प्रकार के टैक्स लगते है और दुःख कि बात यह कि देश के 84 करोड लोग मात्र २० रूपये पर अपनी जिंदगी गुजारते हैं और उनमे से लगभग ८० लाख लोग दो वक्त के खाने को मोहताज हैं|अब आप खुद फैसला किजीय कि भारत में आजादी आई है या 64 सालो कि गुलामी को झेला है |
इस तरह से बहुत से कानून जैसे इंडियन फोरेस्ट एक्ट , इंडियन एक्युजिशन एक्ट(भूमि अधिग्रहण कानून ) व अन्य हैं जो उसी तर्ज पर चलते हैं जैसे अंग्रेज बनाकर गए थे  अब कुछ बात अर्थ व्यवस्था कि करें तो हालत यह हैं कि अंग्रेजो कि लगभग 200 से ज्यादा सालो कि गुलामी सहन करने के बाद भी 1947-48 में जब अंग्रेज इस देश से चले गए थे तब भारत पर १ पैसे का भी कर्ज नहीं था परन्तु आज हालत यह हैं कि भारत का प्रत्येक नागरिक लगभग 18 हजार से भी ज्यादा रूपये का कर्ज दार हो गया है जो कि सरकारे हमसे टैक्स के माध्यम से हर साल वसूलती हैं |
भारत जब 1947 में आजाद हुआ था तब आयत निर्यात का घाटा २ करोड का था आज वही घाटा 17 हजार करोड से भी ज्यादा का हो गया है तो हम कैसे कह दें कि भारत आजाद है |
जो गेहूं देश के नागरिकों को 5 से 6 रूपये किलो मिल जाया करता था वही अनाज आज 18 से २० रूपये किलो मिलता है और देश के किसानो पर कर्ज लगातार बढ़ रहा है तो ये विकास है या विनाश ये फैसला आप खुद कर सकते हैं |

हालाँकि विषय बहुत लंबा है बहुत सी ऐसी और बाते हैं जो ये साबित करती हैं कि भारत के नागरिको पर वही शासन व्यवस्था चलती है जो अंग्रेजो ने बनाई थी बस फर्क इतना से सा है कि पहले गोरे अंग्रेज शासन करते थे और आज काले अंग्रेज करते हैं | देशवासियों अगर आप सच में इस देश को व अपने आप को आजाद करना चाहते हो तो आओ सब मिलकर व्यवस्था परिवर्तन में सहयोग दो और बदल दो इन गुलामी कि मानसिकता व शासन प्रणाली को |एक बात  हमेशा यही याद रखना परिवर्तन करने के लिय समय कि नहीं संकल्प कि आवश्यकता होती है |
 
एक अज्ञात शायर का ये शेर मुझे उनके इस आलेख को बल देता महसूस हुआ है -
''खूने मासूम बहाने वालों,
       ऐशो आराम की हद लहद  होती है.
अपना भी कौल है काले-मुज़फ्फर सुन लो,
      ज़ुल्म सहने से भी कातिल की मदद होती है.''
माँ भारती के ये बेटे आज जो  अपनी आवाज़ के माध्यम से सोये हुए भारतीयों को जगाने का प्रयत्न कर रहे हैं यह हम सभी की सराहना के हकदार हैं और आप एक बार उनके ब्लॉग पर जाकर मेरे शब्दों की सच्चाई परख सकते हैं .उनकी भावनाओं की क़द्र करते हुए मैं अंत में एक और अज्ञात शायर के शब्दों में बस यही कहूँगी-
''अब कलम तलवार होनी चाहिए,
    शब्द की सरकार होनी चाहिए.''
                शालिनी कौशिक

4 टिप्‍पणियां:

S.N SHUKLA ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति,
स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाएं .

तरुण भारतीय ने कहा…

शालिनी जी आपके सहयोग के शुक्रिया .....बस इतना ही कहना चाहूँगा कि ....राजीव भाई के जीवन से मैंने एक बात सीखी है कि साधक हुए बिना सुधारक नहीं बना जा सकता ....और इसी सिद्धांत में मैं प्रतिपल जीता हूँ ...आपके सहयोग हमेशा दरकार रहेगी

Shikha Kaushik ने कहा…

very nice post .thanks

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

बहुत कठिन है डगर....!