शनिवार, 25 जून 2011

रोज अपने में कुछ नया ढूंढ लेती हूँ - डा. निधि टंडन

हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है - ज़िन्दगीनामा ।
- डा. निधि जी की ये बात तो पढकर मैं चौंक ही गया कि जिन्दगी भी एक किताब की तरह है । और उसको पढा भी जा सकता है । दरअसल मैं जिस स्कूल ( के पीछे ) से पढा हूँ । वहाँ तो हमारी मैम और सर ने यही बताया कि बेटा पढने लिखने में टाइम खोटी मत करना । खेलो कूदो । मौज करना । ये जिन्दगी चार दिन की है । बस ये सीख सूत्र मुझे इतना मन भाया कि किताब खोलकर ही नहीं देखी । और ( कक्षा ) 4 में 4 बार और 5 में 5 बार जमा रहा । वो भी इसलिये कि शिखा जी मेरी सूरत देखते देखते तंग आ गयी । और 0 में 10 उन्होंने खुद ही मुझे स्कूल से भगाने के लिये जोङ दिये थे । इस तरह कोरी कापी में मुझे 100 नम्बर मिले । शिखा कौशिक जी इस स्कूल की प्रिंसीपल थी ।
खैर..नहीं पढ पाया । तो आजकल सबसे प्राफ़िटेबल कंफ़र्टेबल सूटेबल लूटेबल झूटेबल हूटेबल etc बाबागीरी मन को भायी ।
अब डा. निधि टंडन जी की इस बात पर सोच रहा हूँ कि मैं भी अपना एक साधुनामा बाबानामा राजीवनामा लिख ही दूँ । तब तक प्लीज नो वेट ।
बट..डा. निधि टंडन जी की एक बात मुझे समझ नहीं आयी । और आयेगी भी कैसे ? मैं he ( man ) हूँ । न कि  she वे कहती हैं -लिखने में प्रसव सी पीड़ा होती है । जब तक अंतस में विचारों के कोलाहल को शब्दों में बाँधकर उसमें जीवन का संचरण कर कागज़ पर नहीं उकेर देती । चैन नहीं मिलता है । अपने विषय में लिखने की बात पर शब्द जैसे साथ छोड़ देते हैं ।


- अरे ! निधि जी आप भी ये क्या बात करती हो । मैं तो अपने बारे में लिखूँ । तो पूरा इंटरनेट ही अपनी ही ( झूठी ही सही ) तारीफ़ से भर दूँ । अपने मुँह मियाँ मिठ्ठू बनना मैंने अपनी पङोसन शिखा जी से सीखा है ।
आगे निधि जी कहती हैं - और अपने इस रूप से पूर्णतया प्रसन्न हूँ । संस्कृत में भारतीय दर्शन पढ़ने के बाद सोच में अंतर आया । विचार परिपक्व हुए । अपने सुख के लिए लिखती हूँ । मैं चाहूंगी कि मेरी रचनाएँ पढ़कर आप लोग जो भी महसूस करें । अच्छा या खराब । मुझे अवगत कराएं । आपको अच्छा लगा । यह जानकर मेरा उत्साहवर्धन होगा । और यदि आपको खराब लगेगा । तो उस कमी को इंगित करके आप मेरा मार्गदर्शन करेंगे ।
- और ये हैं मेरे विचार निधि टंडन जी के बारे में -
लखनऊ उत्तर प्रदेश की डा. निधि टंडन जी संस्कृत में शोध करने के बाद कुछ वर्ष महाविद्यालय में पढ़ा चुकी हैं । जब तक वे अपने मन के भावों को लिखती नहीं हैं । उन्हें चैन नहीं मिलता है । उनके अनुसार -
ज़िन्दगी भी एक किताब सी है । जिसमें ढेरों किस्से कहानियां हैं । इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं । तो कुछ में ख़ुशी मुस्कुराती है । प्यार है । गुस्सा है । रूठना मनाना है । सुख दुख हैं । ख्वाब हैं । हकीकत भी है ।... उनका मानना है कि लिखना एक तरह से नव शिशु को जन्म देना है - लिखने में प्रसव सी पीड़ा होती है । जब तक अंतस में विचारों के कोलाहल को शब्दों में बाँधकर उसमें जीवन का संचरण कर कागज़ पर नहीं उकेर देती । चैन नहीं मिलता है । अपने विषय में लिखने की बात पर शब्द जैसे साथ छोड़ देते हैं । जीवन की इस यात्रा के 35 वसंत देख चुकी हूँ ।...फ़िर भी वे हर - रोज अपने में कुछ नया ढूंढ लेती हूँ । अभी तो मेरा खुद से भी कायदे से परिचय नहीं हो पाया है । हाँ लिखने पढ़ने का शौक है । संस्कृत में शोध करने के बाद कुछ वर्ष महाविद्यालय में पढ़ाया । फिर छोड़ दिया । आजकल गृहिणी हूँ । अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश । ब्लाग - ज़िन्दगीनामा

9 टिप्‍पणियां:

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

nice post shikha ji

शिखा कौशिक ने कहा…

thanks Rajeev ji .

Shalini kaushik ने कहा…

shikha ji aap apne students me satya ke prati nishtha aur bharen to shayad bharat varsh me satya ka fir se mahtva badh jayega.
blog achchha hai kintu prastut kisne kiya hai is me sanshay hone ke karan aabhar yakt nahi kar rahi hoon.

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

अच्छी पेशकश के लिए शुक्रिया ।

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

shaalini ji jis tarah log gupt dan karate hai . usi tarah koi sadhu insan hai. jo any nam se kary karta hai isiliye to mera bharat mahan hai

Shalini kaushik ने कहा…

to aap vahi sadhu mahan hain.hamare aho bhagya.jo aap yahan padhare.

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

पोस्ट करने का अंदाज़ पसंद आया. बधाई स्वीकारें..

Nidhi ने कहा…

आप ने तो मेरे परिचय को अपने प्रस्तुतीकरण से बिलकुल नया जामा पहना दिया........बहुत अच्छा लगा पढ़ कर....मज़ा आ गया ....गंभीरता में हास्य के छोटे छोटे प्रयोग ,काबिले तारीफ़ हैं...
अच्छा हुआ आपने एक कक्षा में कई साल रह कर अपनी नींव मजबूत की ...इससे हम लोगों को एक अच्छा लिखने वाला मिला.........
आप ने मेरे ब्लॉग को अच्छा कहा ...ये जान कर अच्छा लगा पर, वाकई जिस तरह से अच्छा कहा वो अधिक अच्छा लगा

विभूति" ने कहा…

thank u shikha ji...