शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......



बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......
आसमां की किस हद को छू पायेगा तू....
आदमी के जाल से कब तक बच पायेगा तू.....
बोल रे परिंदे....कहाँ जाएगा तू....

तेरे घर तो अब दूर होने लगे हैं तुझसे 
शहर के बसेरे तो खोने लगे हैं तुझसे 
अब तो लोगों की जूठन भर ही खा पायेगा तू 
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

दिन भर चिचियाने की आवाजें आती थी सबको 
मीठी-मीठी बोली हर क्षण लुभाती थी सबको 
आदमी का संग-साथ कब भूल पायेगा तू....
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

बस थोड़े से दिन हैं तेरे,अब वो भी गिन ले तू 
चंद साँसे बस बची हैं,जी भरके उनको चुन ले तू.
फिर वापस इस धरती पर नहीं आ पायेगा तू....
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

5 टिप्‍पणियां:

Anita ने कहा…

परिंदों की दिलकश तस्वीरें और सुंदर शब्द चित्र में ढली उनकी व्यथा कथा बहुत अच्छी लगी... आभार!

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह ने कहा…

beautiful picturs and sweet content,liked it a lot,my heartly best wishes.
dr.bhoopendra
rewa
mp

विभूति" ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुती....

shashi purwar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति बधाई ,तस्वीरे भी बोल्यी हुई नजर आई .

shashi purwar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति बधाई .,तस्वीरे भी बोलती हुई नजर आई .