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bahut sahi bat kahi hai atul ji.
sahmat hun aapse Atul ji .sadar
बढिया प्रयास !!
बहुत सुंदर... मुनव्वर राना की एक लाइन याद आ रही है...मां मेरे गुनाहों को कुछ इस तरह से धो देती है।जब वो बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।।औरऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,मां ने आंखे खोल दी घर में उजाला हो गया।
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4 टिप्पणियां:
bahut sahi bat kahi hai atul ji.
sahmat hun aapse Atul ji .sadar
बढिया प्रयास !!
बहुत सुंदर... मुनव्वर राना की एक लाइन याद आ रही है...
मां मेरे गुनाहों को कुछ इस तरह से धो देती है।
जब वो बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।।
और
ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
मां ने आंखे खोल दी घर में उजाला हो गया।
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