बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

अन्धेरा हमारे आस-पास घिरता जा रहा है....!!


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
             आज,जैसा कि सब जानते हैं,दीवाली का पर्व है,और भारत देश में चारों और हैप्पी-दीवाली,हैप्पी-दीवाली के स्वर बोले जा रहें हैं...और इस पर्व को मनाने की तैयारियां भी चारों तरफ की जा रहीं हैं !सभी तरफ बाज़ारों में बेशुमार भीड़ है गोया कि हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी....और इस भीड़ के कारण हर तरफ जाम-ही-जाम भी है ! लोग खरीदारी-पर-खरीदारी किये जा रहें हैं !अभी दो दिन पूर्व ही धनतेरस का पर्व भी आकर गया है,जिसमें लोगों ने हज़ारों करोड़ की खरीदारी की है पूरे देश में,अब दो ही दिन बाद भी इससे कोई कम खरीदारी नहीं की जाने वाली है....लोगों का पेट भरता ही नहीं,परम्परा जो ठहरी !!


             खरीदारी के इस वातावरण को देखते हुए ऐसा कभी महसूस भी नहीं हो सकता कि गरीबी नामक किसी चिड़िया का बसेरा भी इस देश में है....और यही वो देश भी है,जहां आज भी लाखों-लाख लोग भूखे ही सो जाने वाले हैं !!"उत्सव" के माहौल में किसी का रोना-पीटना लाजिमी नहीं लगता ना दोस्तों...?मगर पता नहीं क्यों हमारे जैसे कुछ लोगों को सुखी लोगों की खुशियाँ देखे ही नहीं भाती....तभी तो इन खुशनुमा पलों में भी मातम ही मनाने को होता है और इस तरह रंग में भंग हो जाता है मगर क्या करूँ अपनी भी आदत ही ऐसी है !

              दोस्तों,पता नहीं क्यूँ मुझे हमेशा इस इस चकाचौंध के पार अन्धेरा ही दिखाई देता है....आत्मरति में लीन हम सब खुशियों भरे लोग गोया खुशिया नहीं मना रहे होते,अपितु करोड़ों-करोड़ लोगों के मुख पर तमाचा-सा मार रहे होते हैं....!!जब लाखों हज़ारों रुपये खर्च करके हम जैसे लाखों लोग खुशियाँ मनाते हैं,तब करोड़ों लोग हमें टुकुर-टुकुर ताकते रहते हैं मुहं बाएं हुए....हमको पता भी नहीं होता कि हमारे आस-पास ही रहने वाला एक बहुत बड़ा वर्ग रोजमर्रा की जिन्दगीं में हमसे जुदा हुआ होकर भी हमारी इन बेपनाह खुशियों में शरीक नहीं रहता....और मजा यह कि हम पढ़े-लिखे सभ्य लोगों को इसका पता भी नहीं होता...!!
            
  इसीलिए दोस्तों...हरेक बार जब दीवाली आती है,मेरा मन उदास हो जाया करता है...बल्कि मनहूस-सा हो जाया करता है....इस दिन मैं जिन्दगी में सबसे ज्यादा बोर....सबसे ज्यादा उदास हो जाता हूँ...क्यूंकि मैं देखता हूँ कि इस दीवाली को अन्धेरा और भी घना हो गया है....इस तरह दोस्तों हरेक दीवाली में बढती हुई कारपोरेट चकाचौंध-धमक और जगमग के बावजूद और भी ज्यादा अन्धेरा हमारे आस-पास घिरता जा रहा है....!!और एक बात बताऊँ दोस्तों...??जल्दी ही यह अन्धेरा इतना घना हो जाने वाला है...कि हमें ही डंस लेने वाला है....क्यूँ कि हमें यह पता भी नहीं कि इस अँधेरे के एक जिम्मेवार कहीं-ना-कहीं हम खुद भी हैं...!! 

4 टिप्‍पणियां:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

यह आलेख हमको भी अच्छा लगा।
..बधाई।

रेखा ने कहा…

हमें उम्मीद का दिया जलाते रहना चाहिए ....

अनुपमा पाठक ने कहा…

स्पष्टता से लिखा गया आलेख!

pragya ने कहा…

उम्मीद नहीं बुझनी चाहिए..