गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

पता नहीं कौन-सी मिट्टी का बना हुआ है आम आदमी




ये ख़ास आदमी जो देश को रोज लहू में डुबोता है
कहते हैं फिर भी ख़ास आदमी को स्ट्रेस बहुत होता है!
बड़ी मुश्किलों से जो हाथ हर एक खेत जोतता है 
सोना बोकर भी इस आदमी का हाथ तंग ही होता है!
क्या ऐसे ही लोगों से होगा वतन का भाल ऊँचा यारों 
किसी के हाथ में लाठी है,किसी के हाथ में लोटा है!


पता नहीं कौन-सी मिट्टी का बना हुआ है आम आदमी 
देश चढ़ रहा है तरक्की की सीढ़ियाँ और ये मनहूस रोता है!
इस ख़ास आदमी की ताक़त और गरूर को तो देखिए जनाब 
जिसे काट डाला है अभी इसने,उसी के लहू में हाथ धोता है!
अब कैसे बताऊं तुम्हें कि मैं उसका कौन होता हूँ मेरे दोस्त
बस जब-जब तुम उसे मारते हो तब-तब दर्द मुझे होता है!


तुम्हारे लिए ये हरफ़ ग़ज़ल ना बन सकी हो तो ना ही सही
इस ग़ज़ल का मगर हर इक हरफ़ आम आदमी का दर्द रोता है!
ये सिसकियों की आवाज़ कहाँ से आ रही है ओ खुदारा मेरे
ये कौन है जो कब्र में भी आज तक खून के आँसू रोता है!!   

3 टिप्‍पणियां:

रेखा ने कहा…

यथार्थ को दर्शाती हुई मार्मिक अभिव्यक्ति .....

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति| धन्यवाद|

Human ने कहा…

उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति
आपको दीपावली एवं नववर्ष की सपरिवार ढेरों शुभकामनाएं !