रविवार, 22 जुलाई 2012

भाई आमिर,नमस्कार !!

भाई आमिर,नमस्कार 
               सत्यमेव जयते के सारे एपिसोड देख-देखकर द्रवित और उद्वेलित होता रहा हूँ,हर बार कुछ कहना भी चाहा,मगर रह गया.मगर अब देखा कि अगला एपिसोड आखिरी होगा तो सोचा कह ही डालूं !बड़े अनमने मन से कह रहा हूँ हालांकि,क्यूंकि बहुत कुछ बहुत सारे लोगों द्वारा कहा/लिखा जाता रहा है,कहा/लिखा जाता रहता है,कहा/लिखा जाता रहेगा....मगर बात उसके प्रभाव की है,उसके परिणामों की है और यह अगर हर बार शून्य ही रहना है तो कुछ भी कहना/लिखना या किसी भी माध्यम से कुछ भी व्यक्त करना है तो पागलपन या सिरफिरापन ही फिर भी यह सब कुछ सिरफिरों या पागलों द्वारा किया जाता रहेगा और उनमें से सदा मैं भी एक रहूंगा ही !!
               पता है आमिर,हमारी समस्याएं या उनकी जड़ कहाँ हैं ??हमारी हर समस्या की जड़ है हमारा देश के प्रति मानसिक रूप से विकलांग होना !!हम कभी नहीं समझते कि हमारा जीना और और अपने बाल-बच्चों के लिए कमाना-खाना भर ही हमारा जीवन नहीं है !हमारे जीने के लिए अपनाए जा रहे साधनों से अगर दूसरों की आजीविका या जीवन के अन्य प्रश्नों पर कोई गहरी मुसीबत आती हो तो यह एक समस्या है !!हमारे रहने के,जीने तौर-तरीकों से दूसरों पर कोई मुसीबत आती हो तो यह एक समस्या है,हमारी गन्दी आदतों से मोहल्ला/शहर/देश परेशान होता हो तो यह एक समस्या है !!
               पता है आमिर कि हमारे जीवन में हुआ क्या है ??हुआ यह है कि जीवन जीने की आपाधापी में हमने ना सिर्फ अपने परिवार को खोया है बल्कि अपने उन सारे जीवन सामूहिक जीवन मूल्यों को भी खोया है जिन पर हम नाज करते थे और अपनी सामूहिकता के कारण जीवन जीने की बहुत सारी उपयोगी चीज़ों को बचाए रखते थे,चूँकि बहुत सी चीज़ें हमारी आदतों के कारण सामूहिक थीं इसलिए उन्हीं चीज़ों के कारण हम अपने आप एक दूसरे से जुड़े हुए होते थे !अब इस जुड़ाव के कारण क्या-क्या होता है, सुनों.....हम एक-दूसरे के साथ बैठते हैं....गप्पें लडातें हैं...हंसी-ठठ्ठा भी हो जाया करता है....आपस में संवाद भी कायम होता है और बातों-बातों में एक-दूसरे की समस्याओं का भी पता चलता है और उन्हें साथ मिलकर हल करने का अवसर भी....तो अनजाने में ही पाल ली गयी आदतों का सूत्र हमें स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे के साथ जोड़े हुए रखता है !!
              अब जब बेतरह साधनों के जुगाड़ ने हमारी ऐसी कमर तोड़ डाली है कि हम अपने खून के परिवार के रिश्तों से ही मरहूम होते चले गए हैं तो फिर गाँव-मोहल्ले-देश और समाज की सामूहिकता की बात करना मजाक सा ही लगता है !!अब मज़ा यह है कि समस्याएँ तो समूह की ही हैं मगर समूह पूरी तरह से ना सिर्फ बिखर ही चुका है बल्कि एक-दूसरे को जानता तक नहीं है !!तो जो समूह (भीड़ कहूँ तो अच्छा होगा !!)एक दूसरे की शक्ल तक से परिचित नहीं है, वो एक-दूसरे की मदद तो क्या ख़ाक करेगा !!...तो हमारे समाज की समाज की सारी समस्याएं यही हैं !! मगर फिर भी एक बात थी जो हमें एक-दूसरे से जोड़े रखने में बड़ी मदद कर सकती थी,वो एक संभावना थी "देश-प्रेम !!"मगर देश-प्रेम को तो हम कब का गटर में डाल कर रोज उसपर अपना टट्टी-पेशाब डाल रहें हैं....तो फिर आमिर क्या संभावना है हमारे समूह की समस्याएँ आसानी से हल हो जायेंगी....!!
              फिर भी आमिर यह भी सच है कि इसी देश अलग-अलग जगहों पर बहुत सारे लोग निजी तौर पर बहुत सारे प्रयास करते आयें हैं और कर भी रहें हैं मगर मेरी दिल में तब भी इस बात पर दर्द भर आता है कि वो किन्हीं अन्य लोगों की प्रेरणा का कारण नहीं बन पाते या हमारे प्रशासन या हमारी सरकारें अपनी जनम-जनम की नींदों से नहीं जाग पाती कि हम हम सबके अलग-अलग या सामूहिक मानस में अवश्य ही कोई खोट है कि ऐसे बहुत सारे वन्दनीय लोगों के अनुकरणीय उदाहरण भी हमें जगा नहीं पाते....हमें उद्वेलित नहीं कर पाते....ये कैसी गड़बड़ है हमारे भीतर कि हम ना तो खुद ही कुछ करते हैं और ना ही किसी करने वाले का आगे बढ़कर साथ देते हैं.....और इस तरह सारे अनुकरणीय लोग   "अकला चलो रे !!" की तर्ज़ पर अकेले ही चले जा रहें हैं !!बस ईश्वर के लिए मेरे लिए राहत की बात यही है कि ये अकेले लोग भी अपने-आप में इतने मजबूत-दिल हैं कि इन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इनके साथ कोई है भी कि नहीं है !!
              मगर मेरा मुख्य प्रश्न यही है कि हम भारतीय इतने जिद्दी....इतने थेथर क्यूँ हैं कि कैसी भी बात पर अब हम नहीं पसीजते....बहुत सी ऐसी चीज़ें जो महज हमारी बुरी आदतों के कारण हैं,अपनी उन आदतों को नहीं छोड़ते ! बहुत-सी ऐसी समस्याएँ जो चुटकियों में हल हो जाए उन्हें अपने किस अहंकार के कारण टाले हुए रखते हैं !तो बहुत सारी समस्याएँ तो हमारी घटिया मानसिकताओं से सृजित हैं और हम अपनी मानसिकता को बदलने को तैयार ही नहीं होते !!.....हम इतने बूरे क्यों हैं आमिर कि हम अपने देश के लिए.....कि हम खुद अपने खुद के लिए... कि हम अपने सब कुछ की बेहतरी के लिए भी कोई सामूहिक प्रयास करने को उद्दृत नहीं होते.....!!हम अपने निजी गुस्से के अलावा किसी भी सामूहिक हित के लिए उद्वेलित नहीं होते !!....हम अपने शहर-राज्य या देश के सम्मान की परवाह करना तो दूर,उसकी अवहेलना तक करते हैं !हमारे खुद के हित के लिए बनाए गए उसके कायदे-क़ानून तक की अवहेलना करते हैं !!
              और आमिर !!हमारे द्वारा हर पल की जाने वाली यही अवहेलनाएं अंततः हमारे गर्त में जाने का रास्ता बनाए जा रही हैं,यह भी तो हम नहीं जानते !!....आमिर चाहता तो हर एपिसोड के हर विषय पर अलग-अलग ही कुछ लिखता....मगर आपके पास शायद इतना वक्त नहीं होता...और फिर मेरे द्वारा लिखी गयी हर बात में सार तो यही होता....और रही वक्त की बात...तो वक्त तो हम सबके पास इतना होता है कि हम सब जीते हैं,अपनी-अपनी समस्याएँ सुलझाते हैं....ऐश-मौज करते हैं....ना जाने क्या-क्या करते हैं....अपने परिवार की शान भी बनते हैं....कभी-कभी तो हम ऐसे-ऐसे भी काम करते हैं कि उससे शहर-राज्य और देश की शान में इजाफा होता है मगर असल में प्राथमिकता हमारा देश नहीं होता.....हमारा खुद का अहंकार ही होता है.....काश कि हम सब में से सब लोग थोड़ा-थोड़ा ही बस भर देश के लिए भी जी जाएँ तो इस मादरे-वतन की शक्लो-सूरत सदा-सदा के लिए बदल जाए....!!                                                           जय-हिंद !!सत्यमेव-जयते !!          

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सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!

2 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

सही कहा आपने बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति आभार प्रतिभा जी -एक आदर्श

Sanjay Kumar Sharma ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति